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आनन्द प्रवचन : भाग ८
सका। नोट गिनते-गिनते ही दम घुट कर वह वहीं खत्म हो गया। बताइए, ऐसा अधर्म का या धर्म के अंकुशरहित अर्थ किस काम आया उस सेठ के ?
दौलत के नशे में मनुष्य अहंकारी होकर अंधा होते देखा गया है। अहंकारी 'धनिक दूसरों का तिरस्कार करते देर नहीं लगाता। कभी-कभी वह जरूरतमन्दों को दुत्कार कर मारपीट भी कर देता है ।
अत्याचारी शासक तैमूरलंग के जीवन का एक रोचक किस्सा है। एक बूढ़ी गायिका, जो अंधी थी उसने तैमूरलंग को गाना सुनाया, जिसे सुनकर वह खुश हुआ। उसने उसे एक हजार रुपये इनाम दिये । जब वह खुश होकर जाने लगी तो बादशाह ने उसका नाम पूछा । बुढ़िया ने कहा-'दौलत' । नाम सुनकर ताना कसते हुए बादशाह बोला-"क्या दौलत अंधी होती है ? तुम तो अन्धी हो।" वह भी कब चूकने वाली थी? बोली-जहाँपनाह ! दौलत तो हमेशा से अंधी होती है । तभी तो देखिये न, वह एक लंगड़े आदमी के पास गई है ।
लंगड़ा तैमूरलंग सुनकर झेंप गया और बुढ़िया के कटु सत्य कथन के बदले उसने उसे और १० हजार का पुरस्कार दिया।
कई बार यह देखा जाता है कि घर में बेईमानी से कमाई हई प्रचुर सम्पत्ति है। सुन्दर मकान, आज्ञाकारिणी पत्नी, स्वामिभक्त सेवक, सज्जन, परिवार सभी कुछ हैं, शरीर भी पूर्ण स्वस्थ एवं बलिष्ठ है । पर इन्कमटैक्स, सैलटेक्स तथा सरकार के अन्य कानून कायदों के कारण रातदिन गिरफ्तारी, बेइज्जती एवं सज्जा का भय और आतंक छाया रहता है। कभी हिस्सेदारों या परिवार के जवर्दस्त व्यक्ति का भय रहता है कि कहीं वे अपना हिस्सा माँग न बैठे। इसलिए कहा है-'सुखी न भयऊँ, अभय की नाईं।" और अभय का वरदान उसे तभी मिल सकता है जब वह ईमानदारी एवं न्यायनीति से धर्मयुक्त धन का उपार्जन करे, चाहे वह थोड़ा ही हो। उस धन के साथ भय और आतंक का दौर नहीं है, निश्चिन्तता है, संतोष की सांस है।
इसीलिए महात्मागाँधीजी ने कहा था-"धर्मरहित अर्थ त्याज्य है, इसी प्रकार धर्मरहित राजसत्ता राक्षसी है।"
किसी पूर्व जन्म में तथागत बुद्ध एक ब्राह्मण से वैदर्भमंत्र सीखते थे, जिसके बल से वह अमुक नक्षत्र आने पर स्वर्णमुद्राएँ बरसा सकता था।
एकदिन बुद्ध को लेकर वह ब्राह्मण किसी कार्यवश विन्ध्य पर्वत की ओर चल पड़ा। मार्ग बड़ा विकट था । घोर जंगल में दस्युओं ने दोनों को पकड़ लिया। फिर उन्होंने बोधिसत्व को धन लाने भेजा जौर उनके गुरु-ब्राह्मण को बंदी बनाये रखा। बोधिसत्व ने चलते समय गुरु से कह दिया कि आज रात को आप मंत्र बल से स्वर्णमुद्रा बरसाने का प्रयोग मत करना, अन्यथा आपके साथ-साथ सभी दस्युओं का नाश हो जाएगा। पर उतावले गुरु ने बोधिसत्व की बात पर उपेक्षा करके जल्दी छूटने के लोभ से मंत्रबल के प्रयोग से स्वर्णमुद्रा बरसा दी । डाकू धन समेट कर आगे बढ़े ही
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