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आनन्द प्रवचन : भाग ८
जीवन-वृक्ष का धर्म-मूल सूखने पर
आपने देखा होगा जिस वृक्ष का मूल सूख जाता है, उसके पत्तों और डालियों को सींचते रहने से वह कभी हराभरा नहीं रह सकता। जीवन-वृक्ष का मूल धर्म है, अर्थ और काम उसके पत्ते और डालियाँ हैं। वह व्यक्ति अपने जीवन-वृक्ष को कभी हराभरा नहीं रख सकता, जो उसके केवल अर्थ रूपी पत्तों को सींचता है या सिर्फ कामरूपी शाखाओं पर ही पानी डालता है। जीवन-वृक्ष तभी तक सजीवन रह सकता है, जब तक इसके धर्मरूपी मूल को सींचा जाता है। धर्मरूपी मूल सुरक्षित रहेगा तो आपके जीवन में सुख-शान्ति सुव्यवस्था, सौभाग्य और उन्नति होती रहेगी, परन्तु याद रखिये, जिस दिन आपका धर्मरूपी मूल उखड़ गया, उस दिन से ये सब एक-एक करके विदा हो जायेंगे।
एक वटवृक्ष बसन्तऋतु में खूब ही खिला हुआ था। उसकी सघन छाया के नीचे अनेक पथिक आकर बैठते थे। पक्षी दूर-दूर से आकर उस पर चहचहाते थे । पतझड़ आई । वटवृक्ष के सभी पत्ते झड़ गए। डालियाँ सूख गयीं। श्रीहीन हो जाने से अब उस वट के पास कोई पथिक या कोई पक्षी नहीं फटकता था। बिलकुल अकेला, नीरस, सूखा ढूंठ होकर वह बड़ वहाँ खड़ा था। एक पथिक वहाँ से गुजर रहा था, उसने वटवृक्ष से पूछा- "अरे बड़ ! आज तेरी कैसी दशा हो गई है। तुझे अपनी इस हालत पर दुःख होता है या नहीं ? तुझे यह अकेलापन खटकता है या नहीं?".
___ बड़ ने कहा--'भाई ! तुम्हारी बात सही है । पर जब तक मेरा मूल सजीवन है, तब तक मुझे कोई आपत्ति नहीं। बसन्तऋतु आने के दिन दूर नहीं हैं, इसके आते ही मैं पुनः हराभरा हो जाऊँगा, मेरी छटा फिर अनोखी हो जाएगी।"
__ आपको भी वटवृक्ष की तरह अपने जीवनवृक्ष के मूल, धर्म को सजीवन रखना है, सबसे अधिक चिन्ता इसी की रखनी है । आपके जीवन में कभी अर्थ की पतझड़ आ सकती है, कभी कामवासना की गर्म लू आपको सता सकती है, बीमारी की बर्फीली हवाएँ आपके जीवन-वृक्ष को जड़-सा बना सकती हैं, परन्तु आपको जीवन वृक्ष की धर्मचेतनारूपी जड़ हरी-भरी रखनी है। कदाचित् अनीति-अन्याय से प्रचुरमात्रा में धन कमा लेने का प्रलोभन आये अथवा कामवासना के प्रलोभन आएँ, अथवा कामज्वर पीड़ित करने लगे, उस समय आपको जीवन वृक्ष की धर्मरूपी जड़ को सुरक्षित रखना है, प्रलोभनों या हानि के भ्रमों के चक्कर में नहीं पड़ना है। अगर अपने धर्मरूपी मूल को सुरक्षित रखा तो एक दिन आपके जीवन में धन और सुखसाधन का वसंत आ सकता है, आपका काम अब मादक न रहकर वात्सल्यमार्ग की ओर मुड़ सकता है, जो आपको स्थायी आनन्द प्रदान कर सकता है।
इसीलिए मनुस्मृति में निरंकुश अर्थ-काम के कुपथ पर दौड़नेवालों को चेतावनी दी गई है
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