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होते मूढ नर कामपरायण
कामसेवन या कामचिन्तन से शारीरिक थकावट, अशक्ति, निराशा, चिन्तावृद्धि, व्याकुलता, शंकालुता आदि के अकारण पैदा हो जाने से अत्यन्त दुःखित एवं त्रस्त हो जाना पड़ा । अधिक समय कामपरायण रहने वाले ऐसे डॉक्टरों को भी औरों की तरह 'न्युरे स्थेनिमा' का रोग हो गया । 'साइकॉलॉजी एण्ड मॉरल्स' नामक पुस्तक में मनोविज्ञानवेत्ता प्रो. हेडफील्ड ने लिखा है कि "स्वच्छन्द यौनाचरण ( कामप्रवृत्ति ) का परामर्श देना व्यक्ति को विनाश के मार्ग की ओर धकेलने की विधि है ।"
इसलिए विषय सेवन जीवन का स्वाभाविक पक्ष नहीं है और न वह अनिवार्य ही है । मन में वासना उभरती है किन्तु आत्मार्थी व्यक्ति अपने ज्ञानबल एवं अन्तर्बल द्वारा उसका निग्रह कर लेता है । काम जीवन का दुर्बल पक्ष है, तथा बहुत नाजुक और मृदुल भी । अतः उससे बचने के लिए अत्यन्त जागरूकता और सावधानी बरतना अपेक्षित होता है, प्रतिक्षण उसे अन्तर्मुखी रहना होता है । मूढ़ व्यक्ति इस बात को नहीं समझते । वे कामसेवन में आनन्द मानकर उससे अधिकाधिक प्रवृत्त होते हैं । नतीजा यह होता है कि काम की प्रबल आसक्ति आत्मा को स्वभाव से विचलित बना देती है, जिसका परिणाम पाप के गर्त में अधिकाधिक डूबते जाना है ।
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काम का प्रचुर सेवन करके उससे सन्तृप्त होकर छोड़ देने की बात सोचना भयंकर भूल है, धोखा है ।
विषय के सेवन से कामाग्नि अधिकाधिक उद्दीप्त होती है । जब काम के प्रबल आवेग पहले बताये गये विविध रूपों में उठते हैं, तब उन्हें रोक सकना बड़ा कठिन कार्य है । काम विकार के आवेग वास्तव में उन पागल कुत्तों की तरह हैं, जो अपने को पालने वाले को ही काट खाते हैं । इन पागल कुत्तों को न पालना ही सबसे बड़ी बुद्धिमानी है । जो जितना अधिक कामविकारों को पालता है या पंपोलता है वह अपने जीवन में उतना ही अधिक विषबीज बोता है । वह मूढ़ है, जो सुरदुर्लभ मानव जीवन को कौड़ी के भाव लुटा देता है ।
ययाति राजा बड़ा बुद्धिमान भी उसकी काम लोलुपता
पुराणों में ययाति राजा का आख्यान आता है । था । मगर वह काम का कीड़ा था । वृद्ध हो गया, फिर नहीं मिटी । वह बहुत ही खिन्न और उदास रहने लगा । कामान्ध ययाति ने अनेक बुद्धिमानों से उपाय पूछा। उन्होंने एक उपाय बताया- अगर कोई आपका बुढ़ापा स्वयं ले ले और अपना यौवन आपको दे दे तो आप पुनः युवा हो सकते हैं । पिता की उत्कट भोगाकांक्षा और खिन्नता देखकर पुत्र ने उसे अपना यौवन दे दिया । कामान्ध ययाति फिर अथक रूप से कामसेवन करने लगा । उसकी इन्द्रियाँ क्षीण हो गयी, हाथ पैर ढीले पड़ गए, फिर भी कामासक्त ययाति अतृप्त रहा ।' वह आचारांग सूत्र के शब्दों में अत्यन्त दुःखी हो गया -
"काम कामी खलु अयं पुरिसे से सोयइ; जूरइ, तिप्पइ, परितिप्पइ - जो कामान्ध एवं भोगान्ध होता है, वह भोग्य पदार्थ का वियोग या रोग होने पर या
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