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बुधजन होते भान्ति-परायण
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पर तब शान्त हुई, जब हल्दीघाटी के युद्ध में राणाप्रताप के प्राणों पर बन आई। शक्तिसिंह का भ्रातृप्रेम जागा, उसने उन्हें अपना घोड़ा देकर बचाया। यदि दोनों ने पहले ही चुटकी भर उदारता दिखाई होती तो शायद इतिहास ही बदल जाता । सांसारिक व्यवहार को सुचारु रूप से चलाने के लिए जीवन में इस चुटकीभर उदारता की जरूरत है।
सुखी गृहस्थी का मूलमंत्र : सहिष्णुता जो बुद्धिमान गृहस्वामी होते हैं, वे अपने परिवार में छोटे-बड़े सबके साथ उदारता और सहिष्णुता रखते हैं। क्योंकि परिवार जीवन में सहिष्णुता के बिना सुख-शान्ति मिल ही नहीं सकती। परिवार के विभिन्न सदस्यों की प्रवृत्तियों और रुचियों में विभिन्नता स्वाभाविक है। किसी को खेल में विशेष रुचि है तो दूसरे को संगीत, जीवन का सार और आनन्द का स्रोत मालूम होता है। तीसरे को गम्भीर वैज्ञानिक अनुसन्धान एवं अध्ययन में आनन्द आता है, चौथे को साहित्य प्रवृत्तियों, लेख-कविता आदि लिखने में रुचि है, पांचवां विविध दर्शनों की चर्चाओं में दिलचस्पी रखता है। रुचि-वैविध्य होने पर भी परिवार में सहिष्णुता और पारस्परिक स्नेहसम्मान की भावना के कारण कभी कलह नहीं होता, पारिवारिक सुव्यवस्था बनी रहती है । चाहे जितना बड़ा परिवार हो, कभी आपस में नहीं ठनती। सभी एकदूसरे के प्रति आदर और प्रेम का व्यवहार करते हैं। सुखी गृहस्थी का मूलमंत्र भी यही है।
१७ वीं शताब्दी में जापान के बुद्धिमान-राज्यमन्त्री ओ-चो-सान का विशाल परिवार अपने सौहार्द्र व संघ के लिए सारे जापान में प्रसिद्ध था। यद्यपि उसके परिवार में लगभग एक हजार सदस्य थे; फिर भी उनके बीच एकता का अटूट सम्बन्ध था । सभी सदस्य साथ ही रहते, साथ ही खाना खाते । कलह तो उनके घर से दूर ही रहता था। ओ-चो-सान के परिवार के इस स्नेह की यशोगाथाएँ दूर-दूर तक गूंज उठी थीं। सम्राट् सामातो के कानों में भी उनके पारिवारिक सौहार्द्र की बात पहुंच गई । इसकी जांच करने के लिए स्वयं सम्राट भी एक दिन इस वृद्ध मन्त्री के यहाँ पहुँचे। स्वागत-सत्कार और शिष्टाचार की रश्म पूरी हो जाने पर सम्राट ने पूछा-'मन्त्रिवरं ! मैंने आपके लम्बे-चौड़े परिवार की एकता, मिलनसारी और स्नेह सद्भावना की कई कहानियां सुनी हैं। क्या आप मुझे बतलाएँगे कि एक हजार से भी अधिक सदस्यों वाले परिवार में यह सौहार्द्र और स्नेह सम्बन्ध किस कारण बना हुआ है ?" ओ-चो सान वृद्धावस्था के कारण अधिक देर तक बातें नहीं कर सकते थे। अतः अपने पौत्र को कलम, दवात एवं कागज लाने का संकेत किया । जब वह इन्हें लेकर आया तो वृद्ध मन्त्री ने कांपते हाथों से कोई सौ शब्द लिखकर वह कागज सम्राट यामातो की ओर बढ़ा दिया। सम्राट ने बड़ी उत्सुकता से कागज पर दृष्टि डाली तो वे आश्चर्य से अवाक् रह गए। एक ही शब्द–'सहिष्णुता' को
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