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बुधजन होते शान्ति-परायण ६१ ईश्वर के रूप में नही मानता, पर वह अग्नि के रूप में तो मानता ही है। मैंने सब कुछ सहा, परन्तु तुम एक दिन भी न सह सके। उसने न तो तुम्हारा अपमान किया था, न तुम्हें किसी प्रकार का दुःख दिया था। फिर तुमने उसके साथ मानवता को भी तिलांजलि देकर अभद्रता का व्यवहार क्यों किया ?" यह कह कर भगवान उस दीन-हीन व्यक्ति की खोज-खबर लेने वहाँ से चल दिये।
उदारता से पत्थर भी पिघल जाता है पाश्चात्य विद्वान Home (हॉम) कहता है
"The truly generous it the truly wise, and he who loves not others, lives unblest."
____ "वास्तविक उदार व्यक्ति ही सच्चा बुद्धिमान है, जो दूसरों से प्रेम नहीं रखता, वह दूसरों के आशीर्वाद से वंचित रहता है।"
अकबर बादशाह वीर दुर्गादास को बहुत चाहता था। अकबर की मृत्यु के बाद उदार एवं वीर दुर्गादास राठौर के यहाँ उसकी माँग पर उसकी शाहजादी तथा शहजादे चले गये थे। दुर्गादास चाहता तो औरंगजेब द्वारा जीते हुए उसके जालौर परगने को सौंपने के बदले अकबर की सन्तानों को सौंपता । मगर उसने उदारतापूर्वक उन्हें सौंप दिया। जब वे औरंगजेब के पास आये तो उसने अपने पौत्र-पौत्रियों को प्रेम से पुकारते हुए कहा-बेटो ! तुमने राठौड़ के यहाँ बहुत ही कष्ट सहे होंगे । फिर तुम्हारा पालन-पोषण हिन्दू-संस्कृति में हुआ है, इसलिए मेरा कर्तव्य हो जाता है कि मैं तुम्हें इस्लाम धर्म की तालीम दिलाऊँ । कल से ही एक मुंशी को मैं नियुक्त कर देता हूँ, जो तुम्हें मजहबी तालीम देगा। इस पर अकबर की बड़ी शाहजादी ने कहा-अब्बाजान ! आप अभी तक दुर्गादास काका को पहचान नहीं पाये। वे मेरे वालिद को अपना भाईजान मानते थे। उन्होंने हमें इस्लाम धर्म की तालीम दिलाने का सारा प्रबन्ध एक तुर्की महिला को रखकर जोधपुर में ही कर दिया था। समयसमय पर वे स्वयं भी आकर हमारे पास बैठते और जाँच भी करते थे कि हमारी पढ़ाई ठीक तरह से हो रही है या नहीं ?"
यह सुनकर आश्चर्यचकित होकर औरंगजेब बोला-बेटा ! क्या कहती हो ? एक हिन्दू राजपूत ने तुम्हारे लिए अरबी भाषा पढ़ाने का इन्तजाम किया, कुराने-' शरीफ की तालीम दिलाई ? फिर एक तुर्की महिला को रख कर ? मेरा मन यह मानने को तैयार नहीं होता।
शाहजादी सविनय बोली-“यह तो प्रत्यक्ष है, अब्बाजान ! और फिर उन्होंने तो हमें बिना किसी शर्त के आपको सौंप दिये ! यह क्या कम उदारता है ?" यों कह कर शाहजादी ने जब. कुरानेशरीफ की आयतें बोलीं, तब तो बादशाह का हृदय दुर्गादास की उदारता के प्रति हिल उठा। फौरन ही औरंगजेब ने अहमदाबाद के सूबेदार पर एक घुड़सवार के साथ एक सन्देश लिख कर भेजा-शाही सन्तानों
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