________________
भागमधरसूरि
पबन चल रहा था, धरती शस्यश्यामला बन कर मानव-हृदयका आनन्दित कर रही थी । ]
ऐसे मंगलमय वातावरण में अमावास्या की रात्रि के मध्यकाल में रत्नकुक्षी यमुनाने एक पुत्ररत्न का जन्म दिया ।
जन्म के शुभ अवसर पर श्रेष्ठिवर्य श्री मगनभाईने उचित उत्सव मनाया, आंगी करवाई, और दान दिया। शुभ मुहुर्त पर पुत्ररत्नका नामकरण-संस्कार किया गया। सबकी उपस्थिति में हर्षमय वातावरण में 'हेमचन्द्र' नाम दिया गया । ज्योतिषयांने ज्योतिष देखकर भविष्यवाणी की कि 'यह बालक युगावतार महापुरुष होगा ।'
अक्षरारम्भ
द्वितीया का चन्द्र जैसे हेमचंद्र भी दिन दिन बढ़ आकृति, ज्ञान, वृद्धि, सत्व, की वृद्धि हो रही है। धीरता और वीरता - ये दो गुण तो हेमचन्द्र के प्रिय मित्र, सच्चे साथी और उन्नति करनेवाले थे ।
दिन दिन बढ़ता जाता है वैसे यह रहा है । उसके आदि बाह्य एवं
शरीर, रूप, रंग, आन्तरिक विभूति
मातापिता के स्नेहपूर्ण लालनपालन में हेमचन्द्र पाँच वर्ष का हुआ। इतनी छोटी उम्र में ही वह सारे मुहल्ले और जैनकुल का प्रिय बन गया । मातापिताने शुभ दिन देख कर उसे ज्ञानाभ्यास के लिये स्कूल में दाखिल किवा | पुण्यवान् हेमचन्द्रने जिस रोज स्कूलमें प्रवेश किया उस रोज अध्यापकों को खुश किया गया और विद्यार्थियों के मुँह मीठे करवाये गये ।
हेमचंद्र में अपूर्व प्रतिभा थी; ज्ञान-प्राप्ति की अभीप्सा थी । उसमें अद्भुत निडरता थी। करुणा और वात्सल्य कूट कूट कर भरे