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दूसरा अध्याय वैवाहिक जीवन
विवाह का बखेड़ा हेमचन्द्र बारह वर्षका हुआ। उस जमाने में जिनके यहाँ छोटी उम्र में शादी हो जाती वह परिवार ईज्जतदार माना जाता था। माह में पड़े हुए मातापिता तो पलनेमें झूलते हुए शिशुको ब्याहने की लोरियों सुनाते और सांसारिक रंग पक्का करते थे।
यमुना माताको बारह वर्ष के हेमूकी शादी करने की अभिलाषा जगी। समृद्ध घर था ही, अतः अनेक कन्यांमके मातापिता अपनी भाग्यवती पुत्रीके विवाह की बात करने सेठ मगनभाई के घर आ चुके ये परन्तु इन्हें कोई जल्दी न थी।
माता यमुना अपने पुत्रका विवाह करने का सुख जल्दी ही देखना चाहती थी। उन्होंने अपने पति से इस विषयमें भाग्रह किया। आग्रह हठाग्रह में परिणत हुआ किसी भी तरह हेमू की शादी शीघ्र ही होनी चाहिए' इस इच्छाने उनकी हिम्मत और भी बढ़ा दी। उन्होंने किसी तरह श्रेष्ठी मगनभाई को अपनी बात स्वीकार करने को मजबूर किया।
दोनों कुलों की शुद्धि देख कर एक भाग्यवती एवं गुणवती कन्या के साथ सगाई की गई। रुपया और नारियल स्वीकार किया गया। मिष्टान से सबका मन और मुंह मीठा किया गया! --