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अमा करनेवाले निर्ग्रन्थ ने सोचा कि इन प्रन्थों की कोई सार्वजनीन व्यवस्था हो तो कितना अच्छा। उन्होंने सूरत के श्री संघ के सामने अपना यह शुभ विचार प्रकट किया।
सूरत-सघने इस महानिर्ग्रन्थ मुनिराज से महाग्रन्थ लेकर उन्हें सुरक्षित एवं सुव्यवस्थित रखने के हेतु एक सुन्दर विशाल भवन बनाया। इस भवन के साथ महानिर्ग्रन्थ का नाम जोड़ा गया। आज भी वह विशाल पुस्तकालय 'श्री जैनानन्द पुस्तकालय' के नाम से सुप्रसिद्ध है।
सूरत के जैन, जैनेतर, सरकारी, प्रजाकीय विविध पुस्तकालयों में इस पुस्तकालय का अग्र स्थान है । इसमें केवल जैन-प्रन्थ ही है। ऐसा नहीं है, परन्तु यहाँ हरएक धर्म के हस्तलिखित एवं मुद्रित प्राकृत, संस्कृत, गुजराती, हिन्दी, अप्रेजी आदि अनेक भाषाओं के प्रन्थों का विशिष्ट और सुन्दर संग्रह है।