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पन्द्रहवा अध्याय देवद्रव्य की रक्षा
गौरांग जाति की नीति बाहर गोरी और भीतर काली आंग्ल जाति के कूटनीतिज्ञोंने भारत अथवा भारत के बाहर यदि कोई मुख्य कार्य किया है तो वह प्रत्येक आर्य धर्म की भावनाओं के मूल बीजो को नष्ट करनेका राक्षसी कुकृत्य ही किया है। आंग्ल जाति के पास बुद्धि थी, और दूरदेशी भी जिसका उपयोग उसने प्रत्येक धर्म में घुसकर सुधारके बहाने जहरीली परन्तु उन्मादभरी हवा फैलाने में किया। यह एक ठोस सत्य है कि उसने इन शक्तियों का प्रयोग केवल अपने देश के हित में और अन्य देशांकी जनता के बाह्य एवं आन्तरिक शोषण में किया । इतिहास गवाह है कि
आंग्ल कूटनीतिज्ञोंने हमारे ही धर्म के अनुयायी युवकों से देवद्रव्य के विरुद्ध आन्दोलनका श्री गणेश करवाया और उसके लिए अजीबो गरीब दलीलें खोज निकाली।
भ्रान्तिपूर्ण दलीलें "आज जैन लोग दुःखी हैं। उनके उद्धार के लिए यह द्रव्य खर्च किया जाय तो उसमें क्या पाप है ? जैन रहेंगे तो ही जैनधर्म रहेगा । भगवान् तो वीतराग हैं, उन्हें धन से क्या मतलब ? आज देवमंदिरों में अगणित द्रव्य है, से किस काम का ? जैनों का दिया