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आगमधरसूरि
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कुछ ही महीनों में गगनचुम्बी विशाल मंदिरका निर्माण हो गया । मयनाकर्षक संगमरमर के प्रतरों पर पैंतालीस आगम लिखे गये । उन्हें राली से रंगा गया । और शुभ मुहूर्त एवं मंगल घड़ी में उन्हें दीवार पर लगाया गया ।
पैंतालिस देवकुलिकाओ के चतुर्मुख बिंब बने। इसके साथ अद्भुत सिद्धचक्र गणधर मंदिर की स्थापना हुई थी । उसमें वर्तमान अवसर्पिणी काल के समस्त तीर्थकर भगवानों के सभी गणधर प्रभुओं के बिम्बों की स्थापना होनेवाली थी । इन बिंबों तथा और भी बाहर से आये हुए अनेक जिनबिंबों की अंजनशलाका विधि- प्राणप्रतिष्ठा विधि - अधिवासना विधि पूज्यपाद आगमेाद्धारकश्री के पुण्यमय पावन करकमलों से
नेवाली थी ।
महोत्सव का प्रारंभ
महामंदिर का उत्सव भी महान् था । उसकी शोभा के अनुरूप तेरह दिनों का महोत्सव शुरू हुआ । सर्वत्र भावभीनी आमंत्रण - पत्रिकाएँ पहुँच गई थी । देश - देश के, गाँव गाँव के भाग्यशाली आने लगे । कई पुण्यशाली धनिक अपने धनका पवित्र कार्य में उपयोग करने की भावना से आए थे । वे धन व्यय करके भक्ति-लाभ लेना चाहते थे । मध्यम वर्ग के लोग प्रभुभक्ति देखने और उसके द्वारा धन्य होने आये थे । ये महानुभाव अनुमोदन का लाभ खाना नहीं चाहते थे । पूज्य साधु-साध्वी-वर्ग भी बडी संख्या में उपस्थित हुआ था । यहाँ पधारे हुए सभी महानुभाव अपने आपको धन्य मानते थे। उन्हें प्रभुका उत्सव देखने के अपने पुण्यका आनन्द था ।