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आगमधरसूरि
भी समय हो जाय परन्तु इस ध्यानी महात्माने चतुर्विध आहार का सर्वथा त्याग किया था, अतः उन्हें पञ्चक्खाण के समय की आवश्यकता नहीं थी।
दिन का तीसरा प्रहर भी धीरे धीरे बीत गया अपराह्न के साढे तीन का वक्त हुआ। पूज्यश्री अर्धपद्मासन लगाये और नेत्र निमीलित किए बैठे हुए थे। उनका वृद्ध अँगूठा नवकार की संख्या गिनता हुआ अंगुलियों के पोरों पर चल रहा था। उतने में शरीर विदारक प्रकुपित वात का आक्रमण हृदय पर हुभा। .
- बड़े बड़े डाक्टर तथा वैद्य उपस्थित थे। परन्तु पूज्यश्री पौद्गलिक बाह्य या आन्तरिक उपचार नहीं लेते थे। सब को ऐसा लगने लगा कि अब पूज्यश्री गये, परन्तु अमृत चौघडिये का अभी दो घड़ी की देर थी। देखनेवाले मुनिगण, उपासक वृन्द, शरीर-निष्णात सब पूज्यश्री को भक्तिभाव पूर्वक एक टक. निहार रहे थे, जब कि पूज्यश्री तो शरीर पर हुए प्रकुपित रोग के आक्रमण के समय भी बहुत ही स्वस्थचित्त थे।
अमृत चौघडिया आ पहुंचा। पू. आगमाद्धारकश्री के अष्टोत्तर शताधिक शिष्या में से छत्तीस शिष्य उपस्थित थे। उन्होंने पूज्यश्री को चारों ओर परिक्रमा क्रम से घेर लिया। श्रावकसंघ के नेता उपस्थित थे। साध्वी संघ एवं श्राविका संघ उपस्थित था।
पूज्यश्री ने नेत्र खोले। दोनों हाथ जोड़ कर मौनतः सबकी क्षमापना कर उपस्थित पुण्यवानों पर हास्यमय सौम्य दृष्टि डाली । देखने वालों में से कुछ लोग समझ गये कि पूज्य श्री अंतिम महायात्रा की