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बि. सं. २००३ श्री वर्धमान जैन ताम्रपत्र आगम मंदिर का प्रारंभ सूरत में चातुर्मास । भारत - पाकिस्तान विभाजन के समय आपत्ति में पड़े हुए श्रावकों के उत्थान के लिए फंड 1
वि. सं. २००४ श्री वर्धमान जैन ताम्रपत्र आगममंदिर में माघ सुदी ३ के दिन १२० तीर्थकर - प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा । सूरत में चातुर्मास । श्री संघ को शास्त्रीय परंपरानुसार संवत्सरी महापर्व का आराधन कराया ।
वि. स. २००५ क्षीण जंघाबल के कारण सूरत में स्थिरता, चातुर्मास । ज्ञानध्यान में विशेष जागरूकता । श्री जैन पुस्तक प्रचारक संस्था की स्थापना ।
वि. सं. २००६ सूरत में आराधना | 'आराधना मार्ग' नामक ग्रन्थ - अन्तिम ग्रन्थ - की अपूर्व रचना | वैशाख शुक्ला पंचमी की रात्रि से अर्ध पद्मासन मुद्रा में सम्पूर्ण मौन के साथ कायोत्सर्ग का प्रारंभ । वैशाख वदी (शास्त्रीय जेठ वदी) पंचमी शनिवार तृतीय प्रहर की चार घडी के बाद अमृत चौघडिये में पचहत्तर वर्ष की अवस्था में उनसठ वर्ष का दीक्षा - पर्याय पालकर अपने पट्टधर शान्तमूर्ति आचार्यदेव श्री माणिक्यसागर सूरीश्वरजी महाराज आदि चतुर्विध संबंध के मुख से श्री नमस्कार महामंत्र का श्रवण करते हुए स्वर्गारोहण ।