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भागमधरसरि दिवस की भरी पूरी व्याख्यान सभा में ताम्रपत्र-आगममंदिर के नवनिर्माण की बात की।
तन से सूरतवाले मन से खूब सुरत श्रोताओं की उक्त सभाने इस बात का हृदयपूर्वक स्वागत किया। स्वाति नक्षत्र के जलबिन्दुओं से सीप के उदर में शुद्ध माती बनते हैं और आगमाद्धारकश्री की वाणी से सूरत के उदर के मध्यम भाग में ताम्रपत्र-आगममंदिर बनता है।
राजनैतिक दृष्टि से यह बड़े संकट का काल था। विश्व में युद्ध की ज्वालाएँ धधक रही थीं, जिन्होंने अनेक को अपने भीतर समा लिया था। इस युद्ध को दूसरा विश्वयुद्ध कहते थे। जीवन की आवश्यक वस्तुएँ बहुत महँगी और अलभ्य हो रही थी। फिर भी पुण्य-पुरुष पूज्य आगमोद्धारकश्री के पुण्य प्रताप से इन बाह्य विघ्नों से कोई अवरोध नहीं हुआ।
प्रारंभ और पूर्णाहुति एक शुभ प्रभात के मंगलमय वातावरण में भूमिखनन कार्य हुआ। उसके बाद भूमिशोधन और शिलास्थापना विधि हुई। शिल्पकार, कारीगर, शताधिक मजदूर इस ताम्रपत्र-आगममदिर के नवनिर्माण कार्य में तन-मन से जुट गये।
दो सौ सत्तर दिनों में पैंतालीस आगमयुक्त, पैंतालीस गवाक्षमंडित, पैंतालीस सोपानों से सुशोभित, पैंतालीस अंगुल प्रमाण मूलनायक देवाधिदेवश्री महावीर भगवत से अधिष्ठित, अन्य अनेक श्वेतश्याम प्रतिमा-समूह से राजित देव-विमानापम मंदिर निर्मित हुआ