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आगमघररि
श्री सूरत के सकल जैनसव से विनती
यह सूचित करते हुए हर्ष होता है किं जिस तरह त्रैलेाक्यअसाधारण, अनन्त सिद्धजीवों से पुनीत श्री सिद्धक्षेत्र में भगवान् श्री जिनेश्वर परमात्मा -निरूपित तथा सकल लब्धि निधान श्री गणधर देवों द्वारा प्रथित आगमों का अस्तित्व बनाये रखने और उन्हें चिरस्थायित्व देने और परावर्तनादि से बचाने के लिए पैंतालीस आगमों का शिला में उत्कीर्ण कर स्थापित किया गया है, उसी तरह उपर्युक्त शुभ हेतुओं से ताम्रपत्र में भी आरूढ किये हुए पैंतालीस आगमों को स्थापित करने के लिए यहाँ एक 'श्री वर्धमान जैन ताम्रपत्रागम मंदिर' स्थापित करने का सदुपदेश स्मरणीय - आगमदिवाकर परम पूज्य आगमोद्धारक श्री आनन्दसागर सूरीश्वरजीने दिया था, और उसका आदि से अन्त तक कार्य करने एवं व्यवस्था सम्हालने के लिए एक संस्था स्थापित करने की आवश्यकता प्रकट की थी, उसका सहर्ष स्वीकार कर के हमने वैशाख सुदी ११ को शनिवार ता. ११-५ - १९४६ के रेराज देोपहर के विजय मुहुर्त में परम पूज्य आगमेोद्धारक आचार्य महाराजश्री आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजश्री की अध्यक्षता में 'आगमेाद्धारक संस्था ' नामक संस्था स्थापित करने का शुभ निर्णय किया है । अतः श्री संघ इस पुण्य प्रसंग प्रर सेठ नेमुभाई की वाड़ी (गे। पीपुरा, सूरत) में पधार कर हमें उपकृत करें ।
परमेापकारी प्रातः आचार्य महाराज
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संघ के नम्र सेवक झवेरी शांतिचंद छगनभाई झवेरी ठाकारभाई दयाचंद मलजी