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उन्नीसवाँ अध्याय
बहता पानी निर्मला
कपडवंज की ओर
माघ के कृष्ण पक्ष में प्रतिष्ठा हुई, और फाल्गुन कृष्ण पक्ष ( उत्तर में चैत्र कृष्ण पक्ष ) में तो गुरुमहाराज श्री नवपदजी की ओली करने कपडवंज आ पहुँचे । पुण्य प्रतापी पुरुष की पावन छाया में ओली की आराधना का आनन्द अपूर्व होता है, इस में शक ही क्या ?
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दुनिया मिष्टान्न खाने में आनन्द मानती है, परन्तु यहाँ तो त्याग में आनन्द माना जाता था । छे|टे छोटे सुकुमार बालक, मदभर जवान तथा केशरहित वृद्ध-सभी तप में अपूर्व आनन्द अनुभव करते थे । इन दिनों हररोज भाववाही देशना, रसमय पूजा - भावनाएँ होतीं । इस प्रसंग पर श्रीपाल महाराजा और श्री मयणा सुन्दरीजी महारानी के जीवन प्रसंगों पर आधारित कलामय रचनाएँ की गई थीं ।
समाज का सम्मेलन
ओली की पूर्णाहुति के कुछ दिन बाद धर्म कार्यों के लिए 'देशविरति धर्म' भाराधक समाज' का सम्मेलन कपड़वज में आयोजित हुआ । पूज्य प्रवर श्री की देखरेख के कारण यह सम्मेलन सफलतापूर्वक कार्यवाही कर के पूर्ण हुआ था ।