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आगमधरसरि
दाम नीति असफल होगी, दंडनीति का दमनचक्र यहाँ कामयाब नहीं होगा, अतः भेदनीति अपनाना ही सुकर होगा।
मन-ही-मन ऐसा निर्णय कर के मेहराजा अपने योग्य पात्र खोजने निकला । 'जैन श्वेतांबर कोन्फरन्स' नामक संस्था पर उसकी निगाह पड़ी। मोहराजा को लगा कि यह नाम से धर्मराजा के पक्ष की संस्था मानी जाती है परन्तु काम तो बरसों से मेरा ही करती भाई है। ___इस संस्था का बालदीक्षा और देव-द्रव्य के साथ घोर वैर था। साधुओंकी निदा तिरस्कार यही उसका मुख्य गुप्त कार्य था। 'जैन' नाम का लेबल तो लगाया था फिर भी जैन शासन की प्रणालियों का भंग करने में यह संस्था गौरव मानती थी। इस तोड़ फोड़ करनेवाली संस्थाने धर्मराजा श्री भागमाद्धारकजी के विरुद्ध जिहाद छेड़ दी, क्योंकि धर्मराजा श्री. आगमाद्धारकजी शास्त्रीय परंपराओं से दृढ़ता पूर्वक लगाव रखते थे।
कॉन्फरन्स के काळे प्रस्ताव मोहराजा ने इस संस्था के सदस्यों के हृदय में अपने गुप्त अनुचरों को प्रविष्ट किया था। कुछ स्थानों पर गुप्तचरे का काम वन गया। इस संस्था के सदस्य भोले लोगों की भीड़ के सामने बाल दीक्षा और देव द्रव्य का विरोध करते, इस तरह मालों को ठगते और भुम में डाल देते थे, परन्तु चतुर लोग चेत जाते थे। ... इस संस्थाने माह राजा की आज्ञा माननेवाली भीड़ को एकत्र किया। यह भीड़ एक मंडप में इकट्ठी हुई। इस भीड़ में कुछ बुद्धिमान लोग भी थे। वे चाहते थे कि ये माले लोग अधर्म की राह