________________
आगमधरसुरि
भाश्चर्य की बात हैं कि तेरह दिनों के इस उत्सव के बीच पालीताना की स्मशान भूमि भी बन्द रही थी अर्थात् किसीकी मृत्यु नहीं हुई।
दर्शन के द्वार प्रतिष्ठा-दिन के दसरे दिन मंगल प्रभात में विधि पूर्वक द्वारोद्घाटन हुआ। दोपहर को अन्तिम मंगल रूप सत्रहमेदी पूजा रखी गई। इस तरह प्रतिष्ठाविधि महोत्सव सम्पन्न हुभा और सभी धर्मप्रेमियों के लिए दर्शन के द्वार सदा के लिए खुल गए।
पाषाण प्रतर पर खुदे हुए पैंतालीस भागमों से शोभित जिनशासन को गौरव-मय बनानेवाला, जिनवाणी की सुरक्षा के लिए दृढ़ता से खड़ा बादलों से बात करता हुआ, दिव्य विमान से स्पर्धा करता हुआ, शशिधवल कीर्तिवान्, मदिरों में रस्न के समान यह आगम मंदिर गिरिराज की उपत्यका में आज मी पूज्य भागमाद्धारकजी की उज्जवल यशोगाथा गा रहा है।'