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आगमघरसरि
... यदि चारसौसे अधिक मुनिवर बोले और विचार-विनिमय करें तो कब पूरा हो ? अतः सत्तर मुनि नियुक्त किये गये । उनमें से उनतीस मुनियों की समिति बनी । फिर चार विचारक मुनियों की प्रवर समिति धनी । इन सब के विचार विनिमय के अन्त में पूज्य नौ आचार्य जो कुछ सर्वानुमति से निर्णय करें उसे सब मुनिवर माने, और सब अपने अपने गच्छ में स्वीकृत करावे-ऐसा तय पाया ।
निर्णीत किये गये विषयों पर नौ आचाय विचार करते थे, उसका एक सर्वमान्य निर्णय किया जाता, और निर्णय पर सभी नौ आचार्यों के स्वीकृति सूचक हस्ताक्षर किये जाते ।
भंग और रंग स्वप्न द्रव्य विषयक प्रस्ताव के लिए पूज्य आचार्यदेव नेमिसूरीश्वरजी तथा पूज्य आगमाद्धारकजी सहमत थे। परन्तु यह सभी श्वेतांबर गच्छेांके मुनियोका समेलन था, और तपागच्छ के सिवा अन्य कुछ गच्छों की स्वप्न द्रव्य विषयक मान्यता भिन्न थी, साथ ही तपागच्छ के भी काई मुनि भिन्न मान्यता रखते थे । फलत : इस विषयका निर्णय नहीं हो सका । इस कारण तपागच्छ के आचार्यश्री विजयसिद्धिसूरिजी महाराज सम्मेलन में से बीच में ही उठ कर चले गये । परिणामतः राजनगर में हो हल्ला मच गया । लोगों में जोर शोर से आलोचना होने लगी कि इन दो आचार्यों के कारण सम्मेलन भंग होने ही जा रहा है । अतः दूसरे आचार्य भी विहार करने का विचार करने लगे ।
इस कारण से पूज्य आगमाद्वारक श्री का अत्यन्त दुःख हुआ । उन्होंने सोचा, “यदि सम्मेलन इस तरह कुछ भी कार्य सम्पन्न किये