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आगमधरसूरि
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बाहर पधारे और कहा "आप को तो यहाँ मेरे साथ ही उतरना है, आगे नहीं जाना है।
पूज्य आगमाद्धारकरीजीने इसे स्वीकार किया। उन्होंने कहा, "आप बड़े हैं, आपकी आज्ञा शिरोधार्य है। मैं ऐसा नहीं हूँ कि आपकी शुभ भावना की अवहेलना करूँ ! हमें शासन-हित का लक्षमें रख कर कार्य करना है।"
इन दोनों आचार्यों के एक स्थान पर उतरने के समाचार जान कर सजनगर की गली गली के श्रावकों में आनन्द की लहर दौड़ गई।
नगर-प्रवेश पूज्य आचार्य देवश्री विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज और पूच्य आगमोद्धारक आचार्य देव श्री आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराज का प्रवेशोत्सव साथ में ही हुआ। उस प्रवेश-यात्रा का दृश्य ऐसा मनमोहक था मान दो राजाओं का एक साथ प्रवेश हो रहा है।।
दोनों महापुरुष अपने विशाल समुदाय के साथ अहमदाबाद के पांजरापोल के उपाश्रय में उतरे।
मूर्तिपूजक श्वेतांबर जैनसंघ के कुल मिला कर चारसौ से अधिक मुनिवर इस सम्मेलन में उपस्थित हुए थे।
सम्मेलन नगरसेठ के अहाते में मंगलमय दिन को संमेलन का शुभारम्प हुजा । शास्त्रीय चर्चाएँ होने लगी। यह मूर्तिपूजक श्वेतांबर जैन संघका सम्मेलन था, गच्छ की बात इसमें गौण थी। तपगच्छ, खरतरगच्छ, पायचंदगच्छ, अंचलगच्छ के मुनिबराने इसमें भाग लिया था।