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आगमधररि
प्रशस्त-विषाद अपने पूज्य तरण-तारण आगों की ऐसी हालत देख उनके नेत्र अश्रपूर्ण हो गये। हृदय फफक उठा। बुद्धि तर्कवितर्क में उतर पड़ी। आज अथाह परिश्रम से अनेक पाथिया प्राप्त कर शक्य प्रमाण में शुद्धीकरण कर, जहाँ अर्थभेद मालूम हो वही पाठान्तर प्रस्तुत कर जो आगम और धार्मिक ग्रन्थ मुद्रित किये जा रहे हैं, क्या उनकी भी कालान्तर मे यही दशा होगी ?
- ताडपत्र हजार वर्ष तक टिकते हैं, काश्मीरी हाथों से बनाये हुए कागज की आयु पाँच सौ से सात सौ वर्ष तक की होती है। यह यांत्रिक कागज और मुद्रण से मुद्रित लेख तो केवल सौ वर्ष तक ही टिक सकता है।
ताड़पत्र अदृश्य होते जा रहे हैं। हस्त-उद्योग से बने हुए कागज बहुत महंगे और अलभ्य होते जा रहे हैं। इस स्थिति में हमारे पूजनीय आगम हजारों वर्ष बाद के श्री संघ को कहाँ से प्राप्त होंगे ! भविष्य के साधु भगवते के पढ़ने को मिले और श्रावक-श्राविकाओं को दर्शन एवं श्रवण का लाभ प्राप्त हो इस हेतु क्या करना चाहिए ? - गुरुदेव का हृदय इस तरह के पावन एवं सर्वजन हितकारी विचारों से भर गया । ऐसे विचार कई कई बार आया करते । निस्संदेह काई यह जान नहीं सकता था कि पूज्यश्री कौनसा महत्त्व का विचार कर
- महापुरुषों की एक विशेषता होती है, उन्हीं विचारों को बाहर प्रस्तुत करना जिनका कार्य रूप में परिणत होना संभव हो । और उन विचारों को प्रस्तुत न करना जिनका अमल संभव न हो ।