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आगमधरसूरि
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बिना उठ जाएगा तो साधु-संस्था का गौरव नष्ट होगा । शासन के कोई काम नहीं बनेंगे और जो काम बनेंगे उनमें भी आप नहीं आएगी । पू. आगम द्वारकश्रीने पू. आचार्य श्री सिद्धिसूरिजी से मिलकर उनसे शासन की खातिर आग्रह छोड़ देने को कहा । यह भी कहा कि इस में शासन की हेठी होंगी । आचार्य दानसूरिजी को भी बुलाकर समझाया । आखिर दोनों मान गये, और पुनः सम्मेलन आरंभ हुआ ।
इस बार बहुत ही सचाई और स्पष्टता से विचार विनिमय हुआ, सर्वगच्छ - मान्य प्रस्ताव पारित हुए और बहुत ही आनन्द के साथ इस मुनि सम्मेलन की पूर्णाहुति हुई ।
विक्रम संवत् १९७० के इस मुनि सम्मेलन में यदि पूज्य आगमेोद्वारकजी न होते ते। यह सम्मेलन न हो पाता और यदि है। भी पाता तो सही सलामत पूर्ण तो नहीं होता ।
ममत्वहीनता
सम्मेलन के प्रस्तावों पर नौ आचार्यों ने हस्ताक्षर किये है; उन में पूज्य आगमेाद्धारकश्री पदवी पर्याय की दृष्टि से दूसरे नंबर के आचार्य थे, फिर भी प्रस्तावों के नीचे अपने हस्ताक्षरें। में मात्र 'आनन्दसागर' शब्द ही लिखा है । वे स्वयं कभी अपने को 'आचार्य' नहीं लिखते थे । उन्होंने दो सौ से अधिक ग्रन्थों का सम्पादन किया है, अनेक मये प्रन्थों की रचना की है, परन्तु उनमें भी 'आनन्द सागरसूरि' तक नहीं लिखा, केवल 'आनन्दसागर' ही लिखते थे | मात्र केसरियाजी तीर्थ के ध्वजदंड की प्रतिष्ठा और आगममंदिरे। के शिलालेख में' 'आचार्य' शब्द का प्रयोग किया है ।
ऐसी थी महापुरुष की ममत्वहीनता ( अनासक्ति ) ।