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आगमधरहि
आधुनिक सभ्यता वीतराग परमात्मा के शासन के प्रति वफादार रहनेवाले वर्गने इस कानून का घोर विरोध किया । पूज्यवर आगमोद्धारकजीने इस कानून को लागू होने से रोकने के लिए अथाह प्रयत्न किया । राजा के साथ पत्रव्यवहार हुआ । राजाने प्रत्यक्ष मिलने के लिए बुलाया । एक दिन निश्चित किया। इस रोज मैं आप से मिलूंगा आप बडादा पधारें ।' ऐसा लिखित पत्र पूज्यश्री को मिला । . पूज्यप्रवर उस समय विहार में थे । राजाने निकट का समय दिया जिससे पूज्य श्री बडादा न पहुँच सके । फिर भी जैन शासनके लिए सर्वस्व समर्पित करनेवाले पूज्य श्री पचीस-पचीस मील प्रतिदिन का लम्बा विहार करते हुए समय पर बडोदा भा पहुँचे । ... राजाने मिलने को कहा था फिर भी वे पूज्य श्री से नहीं मिले, इतना ही नहीं ये विलासी राजा बडोदा छोड महाबलेश्वरका आनन्द लेने चले गये।
सत्ता के मदमें चूर राजाने संघ के नेताओं की एक न सुनी। साधुओं की उपेक्षा की, पूज्य आचार्यों की भी अवहेलना की-यहाँ तक कि जैनशासन के कर्णधारसम पू. आगमाद्धारकजी की भी परवाह न की।
शास्त्रों में उल्लिखित सरस्वती-साध्वीजी को उठा ले जानेवाले राजा गर्द मिल्ल के छोटे भाई के रूप में श्रीमान् सयाजीराव को माने तो इस में क्या उन्न हो सकता है ? अरे ! बीच का मुगलकाल सुन्दरी नारी को उठा ले जाने का युग था, परन्तु 'बाल संन्यास दीक्षा प्रतिबन्ध' का युग श्रीमान् सयाजीराव की देन है।