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आगमधरसरि
११६ स्थायी निधि जिन-शासन के योगक्षेम के हित-चिंतक पू० आगमाद्धारकजी को चिंता होने लगी कि इस राजाको प्रति वर्ष चार हजार स्वर्ण-मुद्राएँ कहा से दी जाएँगी ? साथ ही यह भी चिंता हुई कि मध्यम वर्ग तथा गरीबों के लिए यह तीर्थयात्रा लगभग बन्द हो जाएगी ऐसे विचारों के अन्तमें उन्होंने इस विषय में कुछ उद्यम करनेका मनमें दृढ निश्चय कर लिया।
. पूज्श्रीने उपर्युक्त हेतु से अहमदाबादके चातुर्मास में व्याख्यान के बीच संघके सामने स्थायी निधि के लिए योजना पेश की जिस निधि के सूद में से राजाको चार हजार स्वर्ण मुद्राएँ मिला करें।
श्री संघने शासन के सरताज के वचनोंका हृदय पूर्वक सहर्ष स्वागत किया-"आपकी वाणी हमारे लिए आज्ञा ही है आप जैसा कहें वैसा करने को हम सहर्ष तत्पर हैं।"
पूज्यश्री ने कहा, "आपको अपनी शक्ति के अनुसार काम करना है । राजाका अन्याय स्पष्ट है, परन्तु कलिकालमें धर्म प्रेमियों को धर्म के लिए ऐसा बहुत कुछ सहन करना पड़ता है मध्यम वर्ग के जैन लोग यात्रा के पवित्र लाभ से वंचित न रह जाएँ ऐसी व्यवस्था करना श्री संघ के सम्पन्न पुण्यवानोंका परम कर्तव्य है; और आपको यह कर्तव्य उचित ढंग से पालना चाहिये ।
अहमदाबाद के श्री संघने चार लाख रुपयों की निधि एकत्रित की और भारत भर के जैन संघ के सम्पन्न लोगों को इच्छानुसार लाभ ,