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भागमधरसरि
पूँजो नहीं है। संघने तुम्हारे पूर्वजों को इस तीर्थ की रक्षा के लिए नियुक्त किया था, और तुम्हारे वंशजों के कुटुंबे के योग क्षेम के हेतु इन गांवों की आय के अमुक अधिकार दिये थे। आज तो तुम इन गांवों के मालिक बन बैठे हो। फिर इतने से सन्तुष्ट न हो कर तुम तीर्थ-यात्रियों पर टैक्स लगाने की इच्छा रखते हो ! ऐ राजा! समझदार बना, नहीं तो तुम्हारी प्रजा और जैन संघ तुम्हारे अन्याय की हँसी उडाएंगे; तुम्हारा नाम, तुम्हारा यश, तुम्हारा वर्चस्व क्षीण होगा। जरा अच्छे बना और समझो।
निष्ठुर उत्तर कामान्धे| और मदान्धों का हृदय विवेकहीन हो जाता है। यह राजा मदान्ध बना अतः उसमें विवेकहीनता माई। राजाने कहा, "सवा हजार स्वर्ण मुद्राएँ हर माह या पन्द्रह हजार स्वर्ग मुद्राएँ पर कई देंगे तो ही तीर्थ यात्रा के लिए ऊपर जा सकेगे, अन्यथा नहीं।" .
यात्रा-बन्द का ऐलान राजा के दुराग्रह के कारण जैन संघ को शत्रुजय गिरिराजकी पवित्र यात्राको जाना बन्द करना पड़ा। दिन बीतने लगे, परन्तु पाषाण हृदय राजा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।
पालीताणाका राजा ब्रिटिश साम्राज्य का मांडलिक गजा था । उसके विरुद्ध सर्वोच्च अदालत में मुकदमा दायर किया गया । सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश यूरोपीय व्यक्ति थे; और यूरोपीय व्यक्ति अर्थात् दो बिल्लियों का फैसला करनेवाला कूटनीतिज्ञ बन्दर-फिर भी विनाशक विषम कालकी बलिहारी है कि इच्छा न होते हुए भी ऐसे कूटनीतिक से