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चौदहवाँ अध्याय
रक्षक से भक्षक तीर्थ शिरोमणि सिद्धाचलजी के शिखर पर बिराजमान अलबेले आदीश्वर भगवानकी यात्रा करने के लिए दूर निकट से अनेक यात्री आते है। उनमें धनवान भी होते हैं और गरीब भी; परन्तु सबके मन में भगवान से भेंट करने की धर्म-भावना होने के कारण अमीर गरीब का कोई भेद नहीं होता।
अप्सराओं के समान सुन्दर सौभाग्यवती किया सुन्दर बहुमूल्य वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर दादा के दर्शन करने जाती है और दर्शन करके धन्य हो जाती है।
कई धन कुबेर के समान धनवान् लोग दिव्य राजसी वैभव के साथ बडी उमंग से दादाके दरबार में दरबारी की अदा के साथ जाते हैं और दादा को वंदन करके वापस लौटते हैं।
पालीताणाका राजा यह दृश्य देखता है। पतित-पावन, शरणागत बत्सल परमात्माके दर्शन करने जानेवाले तथा दर्शन करके लौटनेवाले हर्ष भरे यात्रियोंके समूह को देख कर अपने आपको एवं अपने नगरको कृतकृत्य समझने के बदले यह राजा मुगलाई खयालों में उलझ जाता है।
राजा के अराजक विचार राजाने सेाचा, "दर दरके धनाच्य लोग मेरे गाँव में होकर ही यात्राको जा सकते हैं। अन्य तरह से जाना उनके लिए बहुत कठिन