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आगमधर सूर
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भी देवद्रव्य का उपयोग करने का कहना जैने का दुःखी बनाने के बराबर है । ऐसे कहनेवाले लोग जैनों के हित के विरोधी हैं ।
इस समय आणंदजी कल्याणजी की पेढ़ी, श्री गोड़ीजी जैन मंदिर या इन के जैसी दस-बीस पेढ़ियों के पास कुछ अधिक धन होगा परन्तु ये पेढ़ियाँ जिनमंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए रुपये देती हैं, जिससे जैन संस्कृति के धाम रूप जैन मंदिर आज मौजूद हैं ।
जब देवद्रव्य जैसी कोई व्यवस्था नहीं होगी तब आबू, राणकपुर, कुंभारियाजी जैसे मंदिर भी नहीं रहेंगे ।
दक्षिण भारत में दिगंबर जैने। के तथा शैवों के विशाल मंदिर थे, परन्तु उन के यहाँ देवद्रव्य जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी । फलतः वे मंदिर नष्ट हो गये । इन मंदिरों में आया हुआ द्रव्य पूजारी, पांडे, महंत आदि अपने लिए उपयोग में लेने लगे, अतः इन मंदिरों के खण्डहर ही बच रहे । यदि हमारे यहाँ भी देवद्रव्य की ऐसी दशा कर दें तो सौ वर्ष बाद इने गिने मंदिर ही बचे रहेंगे ।
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जैन संघ में देवद्रव्य के सिवा और भी अनेक फंड विविध प्रकार से किये जाते हैं, जिनका अन्य प्रकार से स्वैच्छिक उपयोग हो हो सकता है । आजकल की शिक्षा अथवा आजकल के गुरुकुल, आश्रम, बोर्डिंग हाउस आदि वस्तुतः घर्मरहित हैं, या उन्होंने धर्म के सामान्य अंशों का सम्हाल रखा है । ऐसी संस्थाओं का भी जैन लोग अच्छी रकमे दान करते हैं । इन रकमों का जोड़ किया देवद्रव्य की रकम से कहीं बढ़ कर होगा ।
जाय तो वह