________________
११४
आगमधरसूरि
लेने की विनती प्रकाशित की। सभी सघाने इस विनतीका सहर्ष स्वागत किया, और इस फंड को बारह लाख रुपयों से भर दिया ।
यह विशाल फंड श्री आनंदजी कल्याणजी की पेढ़ीको दिया गया । उस पेढ़ीने उक्त रकम अन्य व्यापारी प्रतिष्ठानों में रेकी । उसके ब्याज में आती हुई चारहजार स्वर्ण - मुद्राएँ राजा की धनलोलुपता की तृप्ति के लिए दी जाने लगीं ।
कानून हटा पर कलंक न मिटा
प्रकृति के अटल न्याय के सामने यह असंभव है कि धर्मार्थद्रव्य को हड़पने वाले सुख से जी सकें । पालीताणा - नरेशका राज्य चला गया । राजा गये, रानी गई, और राजकुमारी गई । पर टैक्स लगानेवालों का वंश सामान्य परन्तु उक्त कलंक की कालिमा आज भी
आज तीर्थ जनता का अंश बन गया है, यथावत् रही है ।