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গাহি शैली, नवा ज्ञान प्राप्त करने के हेतु उन्हों ने पूज्य श्री से प्रार्थना की "आप हमारे विद्यालय में पधार कर स्वाद्वाद' विषय पर संस्कृत भाषामें व्याख्यान देने की कृपा करें।" - पूज्य आगमेद्वारकत्रीने उनकी बिनती स्वीकार कर ली। नियते समय पर विद्यालय में पधारे। पंडितों ने हार्दिक स्वागत किया, और उच्च व्यासपीठ पर बिठाया। पूज्यश्रीने नमस्कार महामंत्र पढ़ कर व्याख्यान प्रारंभ किया। गंगा नदी के अखंड स्रोत की तरह पूज्यश्री संस्कृत में धारा प्रवाह बोलते रहे। उच्चतर संस्कृत के प्रयोगों से युक्त उनकी अस्खलित वाग्धारा जारी रही।
एक व्याख्यान पूर्ण हुआ। विद्यालय के विद्वानों को बहुत सरस लगा। उन्होंने और दो व्याख्यान के लिए बिनती की, साथ ही कहा, "आप कृपया सरल संस्कृत में बोले तो अच्छा रहेगा; आपकी तेजस्वी संस्कृत भाषा समज्ञने में हम जैसे को भी देर लगती है।"
दूसरे दो व्याख्यान भी 'स्थाद्वाद' पर ही हुए, परन्तु उनकी भाषा सरल संस्कृत कर दी गई।
विद्यालय के विद्वान सोचने लगे कि इन महात्माने बनारस में अध्ययन नहीं किया है, इन के यहा संस्कृत दैनिक व्यवहार की भाषा नहीं है, फिर भी हमें समझने में कठिन मालूम होती है वह इन्हें बोलने में सरल लगती है। कितनी विद्वत्ता है ? साक्षात् बृहस्पति के अवतार प्रतीत होते हैं।
शिष्यों को भी आश्चर्य हुआ कि पूज्य गुरुदेवश्री संस्कृत में इतना सुन्दर बोल सकते हैं। ऐसी वाग्धारा बहा सकते हैं। हमें तो