________________
आगमधरसूरि
समाचारे से बगल की जैन - जैनेतर जनता में आकर्षण और
आनन्द की वृद्धि हुई । पूज्यश्री के प्रति पूज्यभाव बढ़ा । कलकत्ते में उनके स्वागत की सतत तैयारियाँ होने लगीं ।
कलकत्ते में प्रवेश
एक महामंगलकारी प्रभातकाल में पूज्य प्रवर आगमोद्धारक श्रीने कलकत्ते की भूमि पर चरण रखे। दूर देश से एक महात्मा पधारे हैं यह जान कर और लोगों के मुख से सुनकर अनेक बंगवासी पूज्यश्री के दर्शनार्थ, उमड़ने लगे । बादशाही ठाटबाट के साथ विशाल स्वागतयात्रा निकली। इस स्वागत यात्राकी सजधज कलकत्ते के कार्तिकी पूर्णिमा के जलूस जैसी थी । यह एक अपूर्व गुरुप्रवेश - यात्रा थी । यह प्रवेशयात्रा जिनमंदिर पहुँची । बाहर चौगान में विशाल ' पटावास' बनाया गया था । वहाँ व्याख्यान दिया गया । हर रोज व्याख्यान में विशाल जन-संख्या आती थी अत: वह पटावास रहने दिया गया और उसी में हर रोज व्याख्यान होता था ।
P
९८
पूज्यश्रीको विचार आया कि नगर महान् है परन्तु उसके अनुरूप एक भी उपाश्रय नहीं है । उचित अवसर पाकर पूज्यपादश्रीने व्याख्यान में उपाश्रय के सम्बन्ध में बात कर इस विषय में कुछ करने के लिए धर्मभाषा में समझाया । उसी समय श्रोताओं की ओर से एक लाख रुपये के उदार वचन मिले ।
}
जैन हिन्दी साहित्य
इस प्रान्त के जैन हिन्दी भाषा से अधिक परिचित थे । उन्हें गुज़राती भाषा ठीक अनुकूल नहीं आती थी । पूज्यश्री शुद्ध सरल हिन्दी में व्याख्यान देते थे जिससे श्रोतागण आसानी से समझ सकते थे ।