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आगमधरसूरि
जैन ग्रन्थ संस्कृत तथा प्राकृत में थे । कुछ प्रन्थों पर टिप्पणियाँ, भाषानुवाद, भावानुवाद आदि थे परन्तु वे सब गुजराती में थे । हिन्दी भाषा में कोई विशिष्ट धार्मिक साहित्य नहीं था । पूज्यश्री का मालूम हुआ कि हिन्दीभाषियों के लिए हिन्दी प्रन्थों की आवश्यकता है । इस शहर के अनुरूप एक ग्रन्थ-भंडार की भी आवश्यकता है । इस हेतु कुछ करना होगा ।
सुयेाग्य समय पर व्याख्यान में इस के सम्बन्ध में उपदेश दिया । पूज्यपादश्री की बाणी अमोघ थी। उनकी बात का अमल हुआ और 'श्री मणिविजयजी जैन ज्ञान-भंडार' की स्थापना हुई । साथ ही हिन्दी साहित्य के लिए भी येाग्य व्यवस्था की गई । पिछली पाँच-छः शताब्दियों में बंगाल में जितनी धर्मान्नति नहीं हुई थी उतनी पूज्यश्री प्रताप से हुई ।
तपागच्छाधिपति आचार्य - प्रवर सूरि सम्राट श्रीविजयहीर सूरीश्वरजी महाराज एक महान् शासन - प्रभावक आचार्य थे । उन्हें ने अकबर जैसे- सम्राट का बोध देकर प्रभावना करवाई । वे महापुरुष बंगाल में पधारे होते तो अनेक शासन-प्रभावना के कार्य करवा सकते, परन्तु 'क्षेत्र स्पर्शना' के अभाव में वहाँ नहीं जा सके । वह लाभ ये सूरि सम्राट दे सके हैं । अतः पाँच-छः सदियों की समयावधि में सबसे अधिक लाभ हमारे चरित्र नायक ने दिया है इस में जरा भी सन्देह नहीं है ।
मुर्शिदाबाद का सौभाग्य
धन, धान्य और वैभव की दृष्टि से मुशिक्षवाद समृद्ध था । यहाँ बहुत से धनाढ्य रहते थे। आज भी वहाँ कई ऐसे बड़े मकान हैं