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भागमधरसूरि
जिनमें तीनसौ मनुष्यों का विशाल परिवार आसानी से रह सकता है। इन मकानों पर से संयुक्त परिवार प्रथा का एवं घर के वैभव और ऐक्यका अनुमान लगाया जा सकता है
- इस नगरमें मुख्य श्रेष्ठिवय श्री विजयसिंहजी दुधेडिया थे। श्रीयुत् विजयसिंहजी दुधेड़िया का श्रेष्ठिवर्य कहा जाय या राजा कहा जाय यह प्रश्न उठ सकता है क्यों कि पुण्य के प्रभाव से उन्हें जो ऐश्वर्य प्राप्त था वह राजा से भी बढ़ कर था। वे विशाल जमीन के मालिक थे, उनकी छोटी सी सेना थी, बहत से हाथी घोड़े भी। नौकर-चाकरी की तो गिनती नहीं । अतः ऐश्वर्य की दृष्टि से नरेश थे, और लोग भी नरेश कहते थे। फिर भी विधिवत् राज्याभिषेक नहीं हुआ था अतः हम भी उन्हें एक विशिष्ट श्रेष्ठी माने यही अधिक वास्तविक होगा।
. इस महान् ऋद्धिशाली सेठने पूज्यपादश्रीके गुणों से आकर्षित होकर उनका भव्य स्वागत किया । जैसे धर्म-नरेश स्वदेह से आगमन कर रहे है और उनकी प्रवेश-यात्रा निकल रही है। ऐसा भव्य कलामय दृश्य था, अथवा दशहरे के दिन दरबार की जो प्रभावशाली शोभाबात्रा निकलती है उसके समान यह प्रवेश यात्रा दर्शनीय थी। उस समय गरीबों को दान भी दिया गया था ।
एक भव्य दीक्षा-महोत्सव पूज्य प्रवर आगमोद्धारकश्रीजी के पुनीत चरणों में दीक्षा लेने की सूरत के दे। सज्जनों की. अदम्य आकांक्षा थी। पूज्यपादश्रीका फिलहाल सुरत में आगमन संभव नहीं था और ये दोनों सज्जन दीक्षा में