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भाममघरसरि
हुई । उसने अपना नाम 'जैन श्वेतांबर कान्फरम्स' रखा। इस सुन्दर नाम को देख कर बहुत से अनजान जाल में फंस गये। इस संस्थाने धर्म शास्त्रों के विरुद्ध हो कर दीक्षा-प्रतिबन्ध' विषयक प्रस्ताव पारित किया।
- 'ऐसे समय क्या किया जाय ! इस विषय पर पूज्यपाद भागमाद्वारकजी बहुत विचार मग्न रहते थे। इसी बीच श्री सूरत जैन संघ के नेताओंने अपने नगर को पावन करने पधारने की उनसे विनती की। पूज्यपाद श्री ने इसे स्वीकार किया। सूरत पधारे । सूरत में आप का शुभागमन पन्द्रह वर्ष की लम्बी अवधि के बाद हो रहा था अतः सूरत के जैन ने उनका बहुत उष्मापूर्ण स्वागत किया।
संस्थात्रयम्
पूज्य आगमोद्धारकश्री के सहयोग तथा मार्गदर्शन में देश-विरतिधर्म भाराधक-समाज' 'यंगमेन सोसाइटी' तथा 'नवपद आराधक समाज' नामक तीन सस्थाएँ कार्य करने लमी।
'देश विरतिधर्म आराधक समाज' का सूरत में बड़ा महत्वपूर्ण अधिवेशन हुआ। राय बहादुर श्री विजयसिंहजी दुधेडिया उसके चेतनामय, परम श्रद्धापरायण अध्यक्ष थे। वे सुप्रसिद्ध तो थे ही, धनकुबेर एवं विद्यावारिधि भी थे। उनके अजीमगंज के महल में उनका अपना स्वतन्त्र ज्ञान भंडार था, जिसमें करीब पचीस हजार से अधिक पुस्तके थीं। ऐसे समर्थ आजस्वी महानुभाष अधिवेशन के अध्यक्ष-पद पर सुशोभित थे।