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आगमधर सूरि
सूरत से भी संगीतकार प्रभु-भक्ति के लिए वधारे थे। महोत्सव के साथ संघ भक्ति में भोजन तो होता ही है । यह भक्ति ऐसी विशिष्ट थी कि राय बहादुर श्री विजयसिंहजी स्वयं अपने स्वामि-बंधुओं का प्रेम पूर्वक परे।सते थे ।
वर्षी दान-य
- यात्रा
दीक्षा के शुभ दिन से एक दिन पहले वर्षीदान का जलूस निकला । इस प्रसंग में बाहर से आये हुए बहुत से धर्म प्रेमी सम्मिलित हुए । बरसी - दान के जलूस में छः हाथी, दो सौ सैनिकों की पलटन, पचास निशान तथा अन्य भी साज़ सरंजाम था । कोई राजकुमार दीक्षा लेने जा रहे है। ऐसा रमणीय दृश्य था ।
यह वर्षीदान - यात्रा 'राम बाग' उद्यान पहुँची । वहा चैत्यवंदनादि कर के यह कार्य पूर्ण हुआ ।
दूसरे दिन के प्रातःकाल से वातावरण दिव्य बनता गया । रामबाग - उद्यान में अशोक वृक्ष के नीचे चतुर्मुख प्रभु के समक्ष उन दोनों बन्धुओं का दीक्षा दी गई ! दोनों के मुख पर त्याग का आनन्द लहरें ले रहा था । पूज्य प्रवर श्री का चातुर्मास भी अजीमगं जमे हुआ। वहाँ बंगाल और बिहार प्रान्तों के जैन तीर्थों के तीर्थोद्धार तथा सुरक्षा के लिए योग्य प्रबंध किया गया ।
विहार
प्रभावशाली चातुर्मास पूर्ण होने पर पूज्य आगमेाद्धारकश्री ने बंगदेश से विहार किया, और बिहार प्रान्त की यात्राएँ कीं । यहाँ के