________________
आगमधrefr
कलकत्ता वासियों को ज्ञात हुआ कि
पूज्य आगमेोद्धारकजी
बिहार प्रान्त को अपने चरणकमलों से पावन कर रहे हैं । अत: जैनों का एक प्रतिनिधि मंडल उन्हें कलकत्ता पधारने की बिनती करने आया और पूज्यश्री से कहने लगा-' - "हे पूज्य गुरुदेव ! बंगाल में जैम लोग धर्म दृष्टि से कंगाल होते जा रहे हैं, और परधर्माभिमुख हो रहे हैं । आप वहाँ पधार कर उद्धार कीजिए।" इस तरह वहाँ का अक्षरश: चित्र प्रस्तुत किया ।
पूज्यश्री ने तुरन्त ही 'क्षेत्र स्पर्शना' शब्द के द्वारा आने की सम्मति प्रकट कीं । दूसरे दिन वहाँ के दैनिक समाचार पत्रों में बड़े बड़े अक्षरों में समाचार प्रकाशित हुए ।
समाचारों का सार
जैन धर्म के अद्वितीय अप्रतिम विद्वान्, महासमर्थ त्यागी, धर्म धुरंधर, आगमोद्धारक आचार्य महाराज श्री श्री श्री १००८ श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराजा अपने शिष्य समूह सहित बिहार प्रान्त में विचरण कर रहे हैं, और अब पद - विहार करते हुए पूज्य श्री बंगाल प्रान्त में पधारेंगे। धीरे धीरे चातुर्मास से पहले कलकत्ते में पदार्पण करेंगे । हरएक गाँव में इन महापुरुष के व्याख्यान हो रहे हैं । उनके दर्शनार्थ मानव समूह उमड़ पड़ता है । ये महात्मा पक्के जैन धर्मी हेाते हुए भी समदर्शी महापुरुष हैं । उनमें साम्प्रदायिक कठमुल्लापन बिल्कुल नहीं है । किसी पर रागद्वेष न रखना उनका स्वभाव है । इन महात्माजी के दर्शन से पतित पावन बन जाता है, नास्तिक आस्तिक बन जाता हैं, मानव महामानव बन जाता है। अतः बंगाल की समग्र जनता को महात्मा के दर्शन, वन्दन का लाभ अवश्य लेना चाहिए ।'