________________
भागमधरसूरि
पूर्व भारत
उत्तर प्रदेश में प्रयाण चातुर्मास समाप्ति के बाद मालवा देश में धर्म-प्रभावना करते हुए कुछ मास कल्प किये। आगे बढ़ते हुए उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया । इन प्रदेशों में जिनकल्याणक-भूमिया थी । इन तीर्थ-स्वरूप भूमियों की यात्रा करते करते आगे बढ़ रहे थे। इन प्रदेशों में जैनों के घर कम थे, और जो थोड़े से थे उनमें भी धर्म के संस्कार विशेष नहीं दिखाई पडते थे ।
पूज्य आगमाद्धारकश्री हर एक स्थान पर यथाशक्ति संस्कार के बीज बोते हुए कानपुर पधारे। कानपुर अहमदाबाद के जैसा महानगर था । वहा लंबे अरसे से थोड़ी संख्या में जैन लोग रह रहे थे। उन्होंने एक सुन्दर जिन मन्दिर बनवाया था जो ‘काँचका जैन मन्दिर' इस नाम से सुख्यात था । यह। जन एवं जैनेतर दर्शनार्थ आते थे । कुछ दिन कानपुर में रहकर पूज्य प्रवर श्री लखनऊ शहर पधारे । वहाँ थोड़े दिन रह कर बनारस की ओर विहार प्रारंभ किया ।
हिन्दू विश्वविद्यालय में पूज्य आगमाद्धारकरी ने विद्याधाम वाराणसी-नगर में पदार्पण किया। सुन्दर स्वागत-पूर्वक उनका उपाश्रय में प्रवेश हुआ । दोपहर को हिन्दु विश्व विद्यालय के विद्वान् पधारे । पूज्य आगमोद्धारकश्रीजी अप्रतिम विद्वान् हैं, ऐसी ख्याति इन विद्वानांने बहुत पहले से सुन रखी थी। अतः उनकी विद्वता से लाभ उठाने और नई