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ग्राममधरसूरि
अपूर्व तैयारी हो रही थी । उस दिव्य पुरुष के आगमन के समाचार मिलते ही संघ के उत्साह में बाढ़ आ गई । बड़े ठाठ बाट से सामेला शुरू हुआ ।
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यह नरकेसरी दिव्य पुरुष एकाकी थे, विचित्र कालबल की यह भी बलिहारी थी । सामेले में बडी बडी पगडिया और अंगरखे पहने हुए लंबे चौड़े डीलडौल और मजबूत शारीरिक गठनवाले मरुधर के अमणी आए हुए थे ।
सामेला विजयस्वरें। के साथ भीरे धीरे आगे बढ रहा है । दूसरी और उसमें चुपके चुपके धीमी कानाफूसी हो रही है । एक धीमे स्वर ने दूसरे के कान में कहा - 'हमारे मुखिया लोग अच्छा साधु पकड़ लाये हैं । यह बेचारे उन मदमस्त झुंडों के सामने क्या करेंगे ?'
महामुमि की देह दुर्बल थी, गठन में माटे थे । परन्तु वे एक छिपे हुए रत्न थे । कोहिनूर की तरह बाह्य नूर उनके नहीं था । अंदर के नूर का सामेलेवाले देख नहीं सके थे । मैला शरीर, मैले कपडे-अनजाने होग कैसा अनुमान लगाते । ऐसी शंका फैलने लगी कि कहीं हमारे संघ की नाक तो नहीं कटेगी ?
आखिर सामेला जिनमंदिर पहुँचा । वहाँ दर्शन, चैत्यवंदन करके उपायको पधारे। 'इरियावहिया' आदि करके व्याख्यान के व्यासपीठ पर दुर्बल और नाटे शरीरवाले महात्मा बिराजमान हुए ।
"धम्म मंगलमुक्किट्ठ गाथा पर विवेचन शुरू हुआ । अच्छा खासा डेढ़ घंटा बीत गया । व्याख्यान समाप्त हुआ, तब शंका करनेवाले और न करनेवाले सभी श्रोता आनंद विभोर होकर नाच उठे ।
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