SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्राममधरसूरि अपूर्व तैयारी हो रही थी । उस दिव्य पुरुष के आगमन के समाचार मिलते ही संघ के उत्साह में बाढ़ आ गई । बड़े ठाठ बाट से सामेला शुरू हुआ । ४२ यह नरकेसरी दिव्य पुरुष एकाकी थे, विचित्र कालबल की यह भी बलिहारी थी । सामेले में बडी बडी पगडिया और अंगरखे पहने हुए लंबे चौड़े डीलडौल और मजबूत शारीरिक गठनवाले मरुधर के अमणी आए हुए थे । सामेला विजयस्वरें। के साथ भीरे धीरे आगे बढ रहा है । दूसरी और उसमें चुपके चुपके धीमी कानाफूसी हो रही है । एक धीमे स्वर ने दूसरे के कान में कहा - 'हमारे मुखिया लोग अच्छा साधु पकड़ लाये हैं । यह बेचारे उन मदमस्त झुंडों के सामने क्या करेंगे ?' महामुमि की देह दुर्बल थी, गठन में माटे थे । परन्तु वे एक छिपे हुए रत्न थे । कोहिनूर की तरह बाह्य नूर उनके नहीं था । अंदर के नूर का सामेलेवाले देख नहीं सके थे । मैला शरीर, मैले कपडे-अनजाने होग कैसा अनुमान लगाते । ऐसी शंका फैलने लगी कि कहीं हमारे संघ की नाक तो नहीं कटेगी ? आखिर सामेला जिनमंदिर पहुँचा । वहाँ दर्शन, चैत्यवंदन करके उपायको पधारे। 'इरियावहिया' आदि करके व्याख्यान के व्यासपीठ पर दुर्बल और नाटे शरीरवाले महात्मा बिराजमान हुए । "धम्म मंगलमुक्किट्ठ गाथा पर विवेचन शुरू हुआ । अच्छा खासा डेढ़ घंटा बीत गया । व्याख्यान समाप्त हुआ, तब शंका करनेवाले और न करनेवाले सभी श्रोता आनंद विभोर होकर नाच उठे । ..
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy