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________________ आममघरसरि सिफारिश-पत्र लेकर पाली-संघ के नेताओने गाँव-गांव जाकर.इन मुनिवर को ढूंढ़ निकाला । विधिवत् वंदनादि किया । पाली को चातुमास का लाभ देने की प्रार्थना संघ की ओर से की। विकट परिस्थिति की सारी बात बता दी और अन्त में यतिवर्यजी का पत्र विनयपूर्वक उनके हाथ में दिया । मुनिवर्य श्री आनंद सागरजीने पत्र पढा । संघ की बातचीत पर से पाली संघ पर आई हुई आफत का अनुमान हुआ । ऐसे संकट काल में शासन को समर्पित होनेवाले का क्या कर्तव्य होता है । इसका विचार करने लगे। थोड़ी ही देर में क्षात्र तेजेोचित निर्णय किया और संघ के अग्रणी श्रावको से मधुरवाणी में कहा, "भाग्यशालियो ! ऐसे कसोटी के समय में श्रावकों की विमती न हो तो भी शासन रक्षा की खातिर किसी भी पराक्रमी साधु का शासन के सैनिक के नाते आना ही चाहिए। तिस पर आप लोगों की प्रार्थना है, यतिवर्य का भाग्रह है, तब तो अवश्य आना चाहिए । फिर भी जैन साधु के नाते जतला देता हूं कि क्षेत्र-स्पर्शना होगी तो भावना रसूंगा। संघ के अग्रणी 'जिन शासन देव की जय' बोल कर उठे, सस्मितवदन, प्रसन्नचित्त पाली पहुंचे। संघ में भानन्द की लहर फैल गई। उजड और अज्ञान से भरे हुए शासन द्रोही, मदिरापी आत्माओं के सहवास से उन्मार्ग पर चढे हुए लोगों से बसे हुए कस्बों और गांवों में विचरण करते हुए मुनिवर श्री आनन्द सागरजी पाली नगर के द्वार पर पधारे । ... पाली नगर के संघ का उत्साह अन्ठा था । हमारे आँगन में भनजाना दिव्य पुरुष आ रहा है-इस उमंग के साथ स्वागत-यात्रा की
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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