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________________ आगमधरत्रि ... - यह भी समय की बलिहारी थी कि उस समय साधुओं की संख्या अंगुलियों पर गिनने जितनी थी। लगभग पैंतालीस-अड़तालीस साधु होंगे। उनमें भी आधे तो वयोवृद्ध और केवल स्वकल्याण कर सके ऐसे थे। उदयपुर में अध्ययन करते थे परन्तु संयमका पालन सचमुच बड़ी सावधानी से होता था। अध्ययन के नाम पर अपवादों की मिलावट करना उनके स्वभाव में ही नहीं था। वे ज्ञानमूर्ति बनने से पहले सयम की जीती जागती प्रतिमा बन चुके थे। .......-.------- पदापण पाली में पदार्पण . वर्षावास (चातुर्मास) से पहले थोड़ा सा विहार करने की भावना से उदयपुर के आसपास के प्राम्य-विस्तार में गये। . उस समय पाली में मूर्तिपूजा के कट्टर शत्रु स्थानक-वासियों के झुंड उमड़ आये। मूर्तिपूजा के श्रद्धालु श्रावक विद्वान् यतिवर्य श्री भालमचंदजीके पास उदयपुर दौड़े। उन्हें अपने नगर पर आये हुए खतरे की जानकारी दी और कहा कि वहाँ आये हुए स्थानकवासी साधु विद्वान् माने जाते हैं। कंठ मधुर है । अच्छा गाने और बोलने का अभ्यास है। इसके द्वारा लोगों को आकर्षिक कर मूर्तिपूजा का विरोध कर रहे हैं। आप पाली पधार कर उनका सामना कीजिए। हम आपकी अच्छी तरह सम्हाल रखेंगे। . ... यतिवर्य ने कहा 'आप घबराइये नहीं । मैं आपको संवेगी मुनि मानंद सागरजी के नाम सिफारिश-पत्र लिख देता हूँ। वे युवक हैं, विद्वान् और तेजस्वी है आपके संघ के लिए उपकारक सिद्ध होंगे । लो यह पत्र।'
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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