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________________ आगमधरसूरि अध्यापकों के अभाव में भी अद्वितीय विद्वान् बननेवाले महापुरुष और अनेक सुविधाओंके बीच भी विद्वान् नहीं बननेवाले कितने अमिनन्दम के पात्र हैं ? छत्र छिन गया अनेक आवरणों के बीच अदम्य उत्साहके बल पर शिष्यको अध्ययन करते हुए देखकर गुरुदेवको आनंद होता था, परन्तु विधाता यह आनन्द देख नहीं सका। गुरुदेव भले चंगे थे, अचानक बीमार पड़े। बीमारी बहुत मामूली थी परन्तु वह प्राणान्तक सिद्ध हुई । वे कराल काल के 'खप्पर में समा गये। वीर सैनिक की तरह वे समाधि-पूर्वक गये, परन्तु गये सेो गये। कराल काल की विकरालताने मुनि आनंदसागरजी का आनन्द छीन लिया। नूतन दीक्षित मुनि छत्र-रहित हो गये। छत्र छिन जाने के बाद महामुनिकी स्थिति विकट हो गई । गुरुके प्रति प्रेमने हृदयको झकझोर दिया। गुरुका विरह बडा कठिन प्रतीत हुआ। इनकी नाव अभी तो मॅझधार में थी, उतने में कर्णधार स्वनाम-धन्य बनकर चला गया। नौ महीने का दीक्षा-पर्याय हुआ था। धीरे धीरे स्वस्थता लाभ कर पुनः स्वाध्याय, ध्यान, तप संयमादि में लीन बने । मरुधर की ओर दसरा वर्षावास अहमदाबाद, शाहपुर में किया। वहा से मेवाड़ की ओर विहार किया। उस समय उदयपुर की गद्दी पर विराजमान यतिवर्य श्री आलमचन्द्रजी नम्र एवं सरल स्वभाव के थे। वे संवेगी साधुओं के प्रति सदभाव रखते थे। ज्ञानवान् भी थे । अतः ज्ञान प्राप्ति की भावना से उनके पास गये।
SR No.032387
Book TitleAgamdharsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherJain Pustak Prakashak Samstha
Publication Year1973
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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