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आगमधररि
के श्री संघने पहचान लिया कि ये महात्मा वर्तमान समय के सर्वोत्तम मुनिरत्न हैं । अतीत के श्रुतधरों की स्मृति इन के द्वारा हरी हो जाती है। सूरत में जौहरियों की कमी नहीं। उन्होने एक दिन में ही शासन के हीरे को परख लिया ।
चैत्य परिपाटी
पन्यास - प्रवर मुनीश्वर के व्याख्यान हररोज़ होने लगे । सुरत के लोगों का धीरे धीरे व्याख्यान सुनने का सुoयसन है। गया । आबालवृद्ध सब का व्याख्यान का लाभ मिले इस हेतु से चैत्य परिपाटी का आयोजन किया गया । सूरत में यह चैत्य परिपाटी विशिष्ट और प्रथम मानी जाती थी ।
जिन मंदिर के दर्शन
विभाग के उपाश्रय या
चतुर्विध संघ के साथ सुरत के प्रत्येक की विधि शुरू हुई । दर्शन के बाद उस उस मैदान में धार्मिक व्याख्यान दिया जाता । मुनीश्वर के दिव्य अतिशय के पुण्य प्रताप से
सूरत की जनता इस कार्यमें
श्रम एवं भूख के
भूल जाती थी ।
इन महात्मा पुरुष को प्रतीत हुआ कि सूरत की जनता को योग्य मार्गदर्शक मिले तो यहाँ की जनता का धर्म - कार्यमें अच्छी तरह उपयोग हो सकता है । इस की तन-मन-धन की शक्ति का शासन के हेतु सुव्यवस्थित उपयोग करना प्रशंसनीय होगा ।
निग्रन्थ के द्वारा प्रत्थोद्धार
उन दिनों आगम दुर्लभतर होते जा रहे थे । आगम जिन प्रन्थभंडारों में थे उन के संरक्षकों को संकुचित वृत्ति के कारण ये ग्रन्थ सड़ रहे थे । इन पतित-पावन, उद्धारक ग्रन्थों को अन्धकार में से