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भागमघरसरि
पताका, अशोक के पत्तों के तोरण, कमान आदि से सजाया गया था। जगह जगह सुन्दर कमखाव की कमाने विशेष आकर्षक दिखाई देती थीं। ___मार्ग में थोड़ी थोड़ी दूरी पर शक्कर के जल की व्यवस्था थी। उसमें कालीमिर्च, दालचीनी, लौंग, जायफल तथा केसर आदि का सानुपातिक मिश्रण किया गया था जिस से किसी को लू न लगे और मार्ग का ताप और श्रम दूर हो जाय । .. शुभ चौघडिये में रथ यात्रा का प्रारंभ हुआ। सब से भागे पारस्य देश के सुधा-धवल अश्वों पर नगाड़े थे, हवा से बात करनेवाली सहस्र लघुपताका मांडित इन्द्र ध्वजा थी। उसके बाद प्राम्य-बाय-समूह था । घुड़सवारों की पंक्ति सबका ध्यान आकर्षित करती थी। उसके पीछे पदाति संघ सेवको की दीर्घ श्रेणी पद-पद्धति-पूर्वक चल रही थी। आधुनिक वाय-यंत्रोंका समूह (बैंड) सुन्दर स्वरोका कूजन कर रहा था। महापताका-समूह आया तब लोग ऊँचे देखने लगे । रास खेलती हुई कुमारिकाका वृन्द निकला, उसके बाद सजे धजे वाहनेका समूह
या । पाश्चात्य वाथ-समूह श्रवणप्रिय सुर सुनाता था । हस्तिदल सब के नेत्रोंको अपनी ओर आकर्षित कर रहा था । सरकारी बैंड की मधुर ध्वनि सबको मनमोहक लगती थी । उसके पीछे पूज्य प्रवर थी अपने शिष्यादि परिवार के साथ समितिपूर्वक चल रहे थे। उनके पीछे संघ के धर्मप्रिय श्रावक लोग थे । उनके पश्चात् तीर्थं कर परमात्माकी प्रतिमासे युक्त सोने-चांदी से जड़ा हुआ दिव्य कलामय तीन शिखरोवाला महारथ आया । उसके पीछे पूज्य साध्वी-संघ था, और अन्त में नगर की महिलाएँ प्रभु-गुण गाती चल रही थीं, मानों पूज्यपादश्री के पदवी दान-प्रसंग पर स्वर्ग से देवियाँ उतर आई हो । सबके आखिर में प्रामरक्षक दल था।