________________
आगमधर सूरि
आबाल ब्रह्मचारी परम पूज्य तपोनिष्ठ सूरिशेखर आचार्य महाराज श्री कमल सूरीश्वरजी महाराज आचार्य-पद-प्रदान - विधि करवाने वाले थे । जब उन्होंने पूज्य आगमे । द्धारकश्री के साथ उक्त पटांगण में पदार्पण किया तब वहाँ उपस्थित समस्त जन-समूहने विनय-पूर्वक खड़े होकर दानां पूज्य महात्माओंका जयजयकार किया ।
८५
पटांगण में एक कलामय काष्ठ मंच बनाया गया था । पूज्य पाद आचार्य देवश्री कमल सूरीश्वरजी महाराज उस पर बिराजमान हुए । अन्य पूज्यवर भी यथा - योग्य स्थानों पर बैठ गए । लाभ घड़ो चन्द्र स्वर में पदवी प्रदान की क्रिया शुरू हुई । रजत समवसरण पर विराजित चतुर्मुख तीर्थकर परमात्मा की प्रतिमाओं के समक्ष यह मंगलविधि प्रारंभ हुई ।
सर्व प्रथम नंदी की विधि की गई । समस्त जमसमूह आतुर नयनों से यह विधि देख रहा था । नंदी - विधि के बाद बंदनक, कायात्सर्ग, सात खमासमणे, सात आदेश, बृहद् नंदी सूत्र - श्रवण आदि विधियाँ हुई ।
चतुर्मुख भगवान् के सामने श्री नवकार महामंत्र पढ़ कर पूज्य पाद आचार्य भगवंत विजयकमल सुरीश्वरजी महाराजने अपने वरद हस्त में सूरिमंत्र - वर्धमान विद्यामंत्र आदि से अभिमंत्रित वास ग्रहण किया, यह वास पूज्य पं. श्री आनन्दसागरजी गणीन्द्र के मस्तक पर डाला, फिर मुनीश्वर आनंदसागरजी गणीन्द्र श्री नवकार गिनकर तीन प्रदक्षिणा देने लगे । इस समय उन पर चतुर्विध संघ वासक्षेप कर रहा था । जय घोषकी ध्वनि और प्रतिध्वनि गूँज रही थी। कुछ उदार पुण्यवान ने