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नौवा अध्याथ
अन्तरिक्षजी के किनारे 'साधु तो चलता भला ।' मोहमयो नगरी में अनेको के माह को क्षीण बना कर चातुर्मास पूर्ण होने पर पूज्य आगमाद्धारकरी ने विहार किया। यह विहार अनोखा था। चतुर्विध संघ के साथ तीर्थ यात्रा को जाते हुए जन-समूह से शोभित यह विहार था।
इस विहार में निष्कांचन भी थे और धनकुबेर भी थे, विद्वान् थे और अल्पमति भी थे, त्यागी और रागी, नामी-अनामी, बच्चे, जवान, बड़े बूढे सब तरह के लोग थे। ये सब एक बात में समान थे। सब को छह 'री' पालते हुए यात्रा करने की अभिलाषा एक-सी थी। सब नंगे पैरे चलते थे। इस संघ के संघपति श्रीयुत् धर्मात्मा अभेचंद लीलाचंद झवेरी थे।
कहाँ जा रहे थे? ये सब मेक्षिनगर के लिए रवाना हुए सार्थ के लोग थे, तीर्थधाम अन्तरिक्षजी जा रहे थे, जहाँ पुरुषादानीय पार्श्वनाथ भगवान की अर्धपद्मासनयुक्त घनश्याम मूर्ति बिराजमान थो।
इतिहास कहता है कि महाराजा. श्री रावण ने यह प्रतिमा बनवाई थी। एक घुड़सवार नीचे से गुजर सके इतनी यह जमीन में विना सहारे अधर में उठी हुई थी। चारों ओर कहीं कोई भालंबन नहीं था। परन्तु पतित कालके प्रभाव से अब एक काना पृथ्वी को छु