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आगमधरसूरि
मगर उजड गए। गाँव स्मशान बने । घर सूने हो गये। ऐसी स्थिति आई कि कोई किसी की सम्हाल नहीं ले सकता था ।
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ऐसी विषम परिस्थिति में मुनियों की क्या स्थिति ? अकाल का विकराल काल मुनियों का भी प्रास करने लगा। बड़े बड़े ज्ञानी कालकवलित हो गये । वाचनाएँ बन्द हुई, स्वाध्याय गया, गुरुगम बन्द हुआ, कंठस्थ था सेा भूला जाने लगा तो नये ज्ञान कीं बात ही कहाँ ? साधु लोग स्वरक्षा के लिए किसी भी प्रदेश की ओर निकल पड़े । अकाल के भीषण तांडव ने सब कुछ तहस नहस कर डाला |
पुनः पनपा
बारह वर्ष बाद पुनः वर्षा रानीका आगमन हुआ, पृथ्वी शस्यश्यामला बनी, लेाग पुनः स्थापित हुए । जेा मुनिराज बच्चे थे वे एकत्रित हुए । उत्तरभूमि के मुनि मथुरा में एकत्रित हुए, वहाँ वाचनाचार्य श्री स्कंदिलाचार्य थे- यह वाचना 'माथुरी वाचना' कहलाई ।
दक्षिण के मुनि सौराष्ट्र के वल्लभी गाँव में एकत्रित हुए । वहाँ बाचनाचार्य श्री देवर्धिगणी क्षमाश्रमण थे । यह वाचना 'वल्लभी वाचना' के नाम से प्रसिद्ध हुई । सबको जो याद था सेा एकत्र किया गया। जहाँ मेद होता वहाँ 'केबली - गम्य' कह कर भेद पाठ भी प्रस्तुत किये गये । उस समय आगमों का पुस्तकारूढ किया गया जिससे फिर भूल न जाएँ अथवा अकाल में इतना भी मिट न जाए । इस तरह बाचनाएँ पल्लवित हुई ।
पू. आ. श्री हरिभद्र सूरीश्वरजी, पू. आ. श्री अभयदेव सूरीश्वरजी, पु. आ. श्री हेमचन्द्र सूरीश्वरजी, पू. आ. श्री मलधारी हेमचंद्र सूरीश्वरजी