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दसवा अध्याय
आगम-वाचनाएँ
शास्त्रों से ज्ञात होता है कि अनन्त-लब्धि-निधान श्री गौतम स्वामीजी पाँचसौ मुनियों को वाचना देते थे। इस तरह प्रत्येक गणधर महाराज अपने अपने शिष्यादि मुनिवरें। को वाचना देते थे।
युग प्रधान श्री भद्रबाहु स्वामीजी पाँच सौ मुनियों को वाचना देते थे। उनमें से एक आर्य स्थूलभद्रजी भी थे। इस के बाद आर्य वन स्वामीजी आर्य रक्षितजी आदि सुनियों को वाचना देते थे।
वाचना देने की एक रूढ परंपरा थी। वाचना से ज्ञान-आगमज्ञान मिलता था। भागम की पुस्तकों की तब आवश्यकता नहीं थी। वे महात्मा बुद्धिशाली थे। आगमज्ञान उन्हें कंठस्थ रहता था।
अकाल
विषमकाल के कारण बारह बारह वर्ष के भीषण अकाल इस भूतल पर एक पर एक आते गये। पशुओं की लाशों के ढेर लग गये। घास और पानी गायब हो गया। गृहस्थ अन्न और जल के बिना तड़प कर मरने लगे। मुर्दो के ढेर लग गये जिन्हें कोई जलानेवाला न रहा। चीलों और गिद्धों को खूब भक्ष्य मिला। नदी नाले सूख गये। कुँओं का पानी बहुत नीचे उतर गया। धनवानों का धन घटा, बुद्धिमानी की बुद्धि कुंठित हो गई। सब माल-असबाब बिक गया। मुट्ठीभर अनाज मिलना कठिन हो गया। हड़ियों के ढेर लग गए।