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मोगमधरसूरि ... पूज्य आगमाद्धारक महादय के मुख पर वही परम शांति, वही अपूर्व भाव विलास कर रहा था । वाचना का समय हुभा । गुरुदेवने अपने शिष्यों को आगम-वाचना देना आरंभ किया। श्रावक भी आये। एक गुरुदेवके सिवा अन्य सब के चित्त डापाडाल थे। शिष्यांका वाचना में मन नहीं लगता था। इसी बीच एक वकील ने पूछा
- "श्रीमान् ! अब अदालत का निर्णय आने ही वाला है, और कई लोगों की धारणा है कि आप को सात साल की कैद होगी। भापने भी यह सुना ही है। फिर भी आज आप आगमवाचना दे पाते हैं। क्या आप के हृदय में लेश भी उग्रता, उत्कंठा या उत्सुकता नहीं है ! हमें बेचैनी हो रही है और आप को क्यों कुछ नहीं होता ? - श्री भागमोद्धारक गुरुजीने कहा-"भाग्यवान् ! एक दिन मरना है इस लिए क्या अभी से स्मशान में जा कर बैठना चाहिए। फैसला तो जो होना होगा से होगा। अभी से उसकी चिंता करके क्यों परेशान हो!
न्यायालय का नेक निर्णय न्यायालय के न्यायाधीश ने सुन्दर, योग्य और न्यायपुरःसर निर्णय दिया
"श्वेताम्बर मूर्तिपूर्जक तपागच्छ के धर्मगुरु लोकप्रिय पन्यास प्रवर श्री आनंदसागरजी गणीन्द्र श्री ने अपने धर्म की रक्षा के लिए जो करणीय था वही किया है। न्यायालय के न्यायाधीशों को श्रीमान् महाराज साहब का कार्य कानून की दृष्टि से अथवा भारतीय समाजव्यवस्था की दृष्टि से तनिक भी अनुचित नहीं प्रतीत होता ।