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आगमधरसरि
निष्कलुष वाणी, सत्यनिष्ठा, क्षमा, विद्वत्ता, सौम्यता, दृढ़ता भादि गुण देख कर मुख्य न्यायाधीश तो पूज्यश्री के सेवक बन गये। कई बार वे समय निकाल कर पू. आगमाद्धारकजी की सेवा में उपस्थित होते और ज्ञान की प्राप्ति करते थे। ऐसी थी गुणों की विजय ।
पूज्य भागमादारकची पर निर्दय आक्रमण के कारण जैन संघों में खलबली मच गई। दिगंबरेने न्यायालय में झूठे आक्षेप पेश किए थे। कई वकीलों की धारणा थी कि इन शिकायतों और गवाहियों पर से महाराज साहब दोषी साबित होंगे और उन्हें सात साल सख्त कैद की सजा होगी । इस अनुमानका का एक और भी कारण था जो महत्त्वपूर्ण था । पूज्य श्री हर एक बात सच ही कहते थे। वकील तो भूल से भी सच बोलने की अनुमति नहीं देते, सलाह भी नहीं देते। परन्तु इस महापुरुष से ऐसी झूठ बोलने की आशा कैसे रख सकते हैं ? इन कारणों से बचाव पक्ष के वकील भी हताश हो गए थे। उनका जड़ कानून उनके कान में 'सात साल की सख्त कैद' की ही बात कहता था। ऐसी बातें सुनकर किसी को भी चक्कर आजाए परन्तु हमारे चरित्रनायक महापुरुष ऐसे प्रसंग में भी पूर्णतया स्वस्थचित रहे ।
धैर्य की चरम सीमा ___ आज आकाश में उदित सूर्यका मुख गभीर था । पृथ्वी पर जैन संघों के मुख भी गंभीर थे । आज अपराह में मुकदमे का फैसला होनेवाला था । 'सात साल की सख्त कैद' की अफवाह ने वातावरणको उदास बना दिया था । सब लोग न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा करने लगे।