________________
भागमधरसरि
पूज्य आगमोद्धारक महाराज ने कहा, "यह हमारा मंदिर है अतः हम भगवान को अंदर ले जाने के हकदार है। यदि हमारा अधिकार न हो तो हम प्रतिमाजी को अन्दर नहीं ले जाना चाहते । यदि आप लोग ऐसा लिखित सबूत दिखा सके कि हमारा अधिकार नहीं है तो हम अपना आग्रह छोड देंगे।
दिग बरे के अग्रणी यह कहते हुए बाहर गये कि "हमारे पास लिखित सबूत है और हम उसे बताने को तैयार हैं। वे लोग लिखित
आधार के बदले गुंडों को ले आये। अचानक भयानक . आक्रमण कर दिया गया । विवेकहीन दिगंबरा ने तीर्थंकर की प्रतिमा और पूज्य साधु भगवंतों की मर्यादा की भी रक्षा नहीं की। नंगों से मर्यादा की आशा रखना वेश्याओं से शील की आशा रखने के समान है।
इन विवेकहीनेने पूज्य भागमोद्धारक जी को भी नहीं छोड़ा। उन पर बड़े जोरों की चोट की गई। पूज्य श्री को बचाने की कोशिश करनेवालों में से किसी का सिर फूटा, किसीका हाथ टूटा। कई बेहोश हो कर गिर पड़ें । तीर्थ-भूमि धर्म प्रेमियों के रक्त से लाल हो गई।
आखिर सरकारकी कुमुक आ पहुँची। कई लोगों को गिरफ्तार किया गया। मामला अदालत में पहुंचा।
उदारता का उदधि . आगमाद्धारजी तो बिलकुल शान्त, सस्मित वदन, स्वाध्याय-रत बैठे हुए थे। दिगंबरों ने अपने बचाव के लिए पूज्य श्री के खिलाफ जुर्मनामा पेश किया था। पूज्य आगमोद्धारकजी क्षमा और संयम की मूर्ति थे। ये महापुरुष तो अपराधी को क्षमा करना ही जानते थे, दंड की बात क्या, विचार तक नहीं था।