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मागमधरसरि
उपाय करना तय किया है परन्तु हमें यह मंजूर नहीं है । अब हम जाग्रत हैं। ___'तुम लोगेांने हमारा धन लूटा है, अब हमारा धर्म लूटने चले हो लेकिन खबरदार ! हम अपने तन, मन और धन को कुर्बान करके भी अपने धर्म और धर्म-स्थानों की रक्षा करेंगे । जब तक हमारे शरीर में प्राण हैं तब तक तुम अपनी इच्छा पूर्ण नहीं कर सकोगे।'
"सुदर्शन के साथ अन्याय करनेवाले राजाको आखिर झुकना पड़ा था । साध्वीजी का शील भंग करने का इच्छुक लुटेरा राजा... गर्द भिल्ल मृत्यु के मुख में जा गिरा था। ___"धर्म-भ्रष्ट करने के इरादे से हमारे धर्म-स्थान अथवा पवित्र पर्वतों पर जो हस्तक्षेप हो रहा है से हमें नहीं ही सहना चाहिए । आप लोग कटिबद्ध हो कर अहिंसक लड़ाई के द्वारा ब्रिटिश सल्तनतको दिखा दीजिए कि हम अभी जिन्दा हैं। हमने हाथों में चूडिया नहीं पहनी हैं। यदि आप शासन रक्षा के लिए मर मिटेंगे तो इस भव में भी कल्याण है और परभव में भी कल्याण है ।"
___पन्यासप्रवर मुनिराज श्री आगमोद्धारकजी के व्याख्यान हर रोज होने लगे। उनकी ओजस्विनी विद्युत्-जिह्वा से निकला हुआ एक एक शब्द हर किसीको उत्तेजित कर देता था । उनकी सभा में सरकार की ओर से गुप्तचर रखे जाते थे । कई भद्र जीवों को भय रहता था कि मुनिराज पर वारंट आएगा । इसलिए बड़े बड़े जैन अप्रणियोने आकर उन्हें समझानेका प्रयत्न किया तब पूज्य मुनिराजने कहा, "मैं कुछ झूठ नहीं कह रहा हूँ। मुझे राज्य के साथ कोई दुश्मनी नहीं है, परन्तु धर्म तथा धार्मिक स्थलों पर जो कदम उठाए जा रहे हैं उन से मेरा